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गाथा : २५४ ]
पंचमो महाहियारो
=८ जग०+ ( ७५००० + २०००००० ) यो०
-पुरुष
सुत्त
=जग० +{ १५०००० + २००००० ) यो०
83
जग ० ४३
+ 540000 योजन ।
(२) इच्छित वृद्धिसे अघस्तन समस्त समुद्रों-सम्बन्धी एक दिशाका विस्तार प्राप्त करनेकी विधि-
इ-वडीवो हेट्ठिम-सयल - सायराणं एय-दिस रुदन् समासाणं प्राणयण गाहा
सग-सग वड्डि- पमाणे, वो लक्खं प्रवणिण अद्ध-कवे ।
इच्छिय वड्डीदो तो हेट्ठिम उवहीण - संबंधं ॥ २५४ ॥
[ ७३
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- इच्छित वृद्धि से अधस्तन समस्त समुद्रों-सम्बन्धी एक दिशाके विस्तार-योगोंको प्राप्त करने हेतु यह गाथा सूत्र है-
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अपनी-अपनी वृद्धि प्रमाणमेंसे दो लाख कम करके शेषको आधा करनेपर इच्छित वृद्धिवाले समुद्रसे पहले के समस्त समुद्रों सम्बन्धी विस्तारका प्रमाण प्राप्त होता है ।। २५४ ।।
विशेषार्थ- - गाथा २५३ की प्रक्रिया से इस गाथा की प्रक्रियाका फल विपरीत है। यहाँ इच्छित समुद्रकी वृद्धि द्वारा उस समुद्रसे पहले के ( अधस्तम ) समुद्रों-सम्बन्धी एक दिशाके विस्तार योगोंको प्राप्त करने की विधि दर्शाई गयी है ।
इष्ट वृद्धिवाले समुद्र के पहलेके समस्त समुद्रों सम्बन्धी विस्तारका प्रमाण प्राप्त करने हेतु सूत्र इसप्रकार है— इष्ट समुद्रसे पहलेका समस्त समुद्रों सम्बन्धी विस्तार
वरित वृद्धि - २००००० यो०
उदाहरण – मानलो वारुणोवर समुद्रकी वृद्धि इष्ट है । इस समुद्रकी वृद्धिका प्रमाण ८६ लाख योजन है अतः इसके पहले के समस्त समुद्रोंका विस्तार ( लवरणसमुद्र २ लाख + कालोदका ८ लाख + पुष्करवर समुद्रका ३२ लाख ४२ लाख योजन है । यथा
अधस्तन समुद्रों का सम्मिलित विस्तार ८६०००००-१०००००
= ४२००००० योजन ।