SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : १८०-१८४ ] पचमो महाहियारो [ ४३ अर्थ-इन कूटोंके अभ्यन्तर-भागमें चार सिद्धवर कुट हैं, जिनके ऊपर पहले के ही सम अंजन-पर्वतस्थ जिन-भवनोंके सदृश जिनालय स्थित हैं ।। १७६ ॥ पाठान्तर । द्वितीय जम्बूद्वीपका अवस्थान जंबूदीयाहितो, संखेज्जाणि पयोहि - दीवाणि । गंतूण प्रशस्ति अण्णो, जंबुदीनो परम - रम्मो ॥१८०।। प्रर्थ-जम्बूद्वीपसे आगे संख्यात समुद्र एवं द्वीपोंके पश्चात् अतिशय रमणीय दूसरा जम्बूद्वीप है ॥ १८ ॥ वहाँ विजय आदि देवोंकी नगरियोंका अवस्थान और उनका विस्तार तत्य हि विजय-प्पहुविस हवंति देवाण दिव्य-णयरीओ'। उरि बज्ज-खिबीए, चित्ता-मज्झम्मि पुग्न-पहुवीसु॥१८१।। अर्थ - ( जहां दूसरा जम्बूद्वीप स्थित है ) वहाँ पर भी वज्रा पृथिवीके ऊपर चित्राके मध्यमें पूर्वादिक दिशाओंमें विजय-आदि देवोंकी दिव्य नगरियाँ हैं ।। १८१ ।। उच्छेह - जोयणेणं, पुरिनो बारस-सहस्स-रुबाप्रो । जिण-भवण-भूसियाओ, उववण - वेदोहि जुत्ताओ ।।१८२॥ १२०००। प्रथ-ये नगरियाँ उत्सेध योजनसे बारह हजार ( १२००० ) योजन-प्रमाण विस्तार सहित, जिन-भवनोंसे विभूषित और उपवन-वेदियों से संयुक्त हैं ।। १८२ ।। नगरियोंके प्राकारोंका उत्सेध आदि पण्णत्तरि-दल-तुगा, पायारा जोयणद्धमत्रगाढा । सध्याणं गयरीणं, गच्चंत-विचित्त-धय-माला ।।१३।। अर्थ-इन सब नगरियोंके प्राकार पचहत्तरके अाधे ( ३७१ ) योजन ऊँचे, अर्ध (1) योजन-प्रमाण अवगाह सहित और फहराती हुई नाना प्रकारकी ध्वजाओं के समूहसे संयुक्त है ।। १८३।। कंत्रण-पायाराणं, वर-रयण-विणिम्मियाण मू-वासो। जोयण-पणवीस-बलं, तच्चउ-भागो य मुह-यासो ॥१४॥ ----- - --- १. ब. नयरो। २. द. उबरिम ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy