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________________ पंचमो महाहियारो जोयण सहस्स- तुंरंगा, पुह-पुह तम्मेत्त-मूल- वित्थारा । पंच-सय- सिहर-रुदा, सग-सय- पण्णास मज्भ- वित्वारा ।। १३७ ।। गाथा : १३७-१४१ ] १००० | ५०० ७५० । अर्थ — ये कूट पृथक्-पृथक् एक हजार ( १००० ) योजन ऊँचे, इतने मात्र (१००० बो०) मूल विस्तार सहित पाँच सौ ( ५०० ) योजन प्रमाण शिखर विस्तारवाले और सात सौ पचास ( ७५० ) योजन प्रमाण मध्य विस्तारसे युक्त हैं ।। १३७ ।। ताणोवरिम घरेस, कु ́डल-बीवस्स अहिवई देवा. तरया' रिय-जोगं, बहु-परिवारा' विराजति ॥ १३८ ॥ अर्थ - इन कूटोंके ऊपर स्थित भवनों में कुण्डलद्वीप के अधिपति व्यन्तर देव अपने योग्य बहुत परिवार से संयुक्त होकर निवास करते हैं ।। १३८ ॥ अंतर-भागेसु एवाणि जिणिद-दिव्व कूडाणि । एक्केषकाणं अंजणगिरि-जिण मंदिर- समाणाणि ।। १३६ ।। 2 [ ३५ अर्थ - इन सभी कूटोंके अभ्यन्तर भागों में अंजनपर्यंतस्थ जिन मन्दिरोंके सत्य दिव्य जिनेन्द्र फूट हैं ।। १३६ ।। एक्केबका जिण कूडा, चेट्ठेते दक्षिणुत्तर विसासु । ताणि जण पथ्यय जिंणिद पासाद सारिच्छा ।।१४० ॥ - - पाठान्तरम् । अर्थ — उनके उत्तर-दक्षिण भागों में अजन पर्वतस्थ जिनेन्द्रप्रासादों के सदृश एक-एक जिन कूट स्थित है || १४० ।। पाठान्तर । रुचकर द्वीपके मध्य रुचकवर पर्वतका अवस्थान एवं उसके विस्तार आदिका विवेचन तेरसमो रुचकरो, दीयो चेट्ठेदि तस्स बहु-मज्झे । अस्थि गिरी रुचकवरो, कणयमत्री चक्कबालेणं ||१४१ ॥ अर्थ-तेरहवाँ द्वीप रुचकबर है। इसके बहु- मध्यभाग में मण्डलाकारसे स्वर्णमय रुचकवर पर्वत स्थित है ।। १४१ ।। १. द. ब. क. ज. चित्तरमा । २. द. व. क. ज. परिवारेहि । ३. द. व. क. ज. संजुतं । t
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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