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________________ टीकाकी पूम्य माताजी बिरामतीजी का में मतिम कताई जिन्होंने मुझ पर अनुग्रह कर सम्पादन का गुरुतर उतरमायित्व मुझे सौंपा । को कुछ बन पाई बह सब पूज्य माताजी के मान जोर बम का ही पधुर फल है। निकट रहने वाला ही शान सकता है कि माताजी ग्रन्थ लेखन में कितना परिषम करती है, स्वपि स्वास्थ्य अनुक्कम नहीं रहता और दोनों हार्थों की अनुमिवों में चर्म रोग भी प्रकट हो सका है सपापि अपने लक्ष्य से विरत नहीं होती पौर पनपरत कार्य में त्रुटी रहती है। तिलोयपण्णासी से नहाम् विशालकाय पन्ध की टीका आपकी साधना, कप्ट सहिष्णुता, वय, त्याग-सप और निष्ठा का ही परिणाम है । मैं यही कामना करता है कि पुण्य माताजी का एनत्रय कुमस रहे और स्वास्थ्य भी अनुकूल बने ताकि आप जिनानी की इसी प्रकार सम्यगा. राबना कर सके। म पूश्य माताजी के चरणों में प्रतगः पदामि निवेदन करता है। पोयपनामा साहित्याचा सागर और प्रोसेसर मम्मीचमाती, मातुर का भी प्राभारी है जिन्होंने प्रथम सब को मांति इस सब के लिए भी कमतः पुरोवाक मोर गणित विषय मे लिखा है। प्रस्तुत सग में पुद्रित चित्रों की रचना के लिये सरकाशमी, महामेर कोर का रमेश मेहता, रामपुर बम्पपाद के पात्र हैं। इस ग्रन्थ के पृ. ११. पर मुदित कल्पवत का चित्र, पु. २९४ का समवसरण का वित्र, पृ. २४ का सप प्रातिहार्य का चित्र और पृ० ५२८ एर मुद्रित प्रष्ट परष म्य का चित्र शचार्य १.५ की वेशभूषाजी महाराज पारा सम्पादित 'नमोकार मंत्र पंच से लिये गये है। समयसरन विषयक कुछ अन्य भित्र (पृ. २१५, २१९, २२४, २३६. २४ नेम सिवान्त कोश से लिये गये है1 एसहर्ष इम इन मामारी ।। पृष्ठ २४ के सि के शिमला प ण एक प्रातिहार्य है किन्तु चित्र में उसके स्थान पर जय-जयकार भनि है। इसी तरह पृ. ५२८ पर भष्ट मंगस प्रमों के चित्र में बण्टा भित्रित है कि गाषा में 'कलग' का उस्लेसहा है। पुग्म मातांजी के संघस्थ पानी, काली मारोगीमा बार में प्रम्य लेखन सम्पादन और प्रकाशन हेतु सारी म्पमस्याएं बुटा कर नमारता पूर्वक सहयोग दिया है एतपय में मापका अत्यन्त पण्डीत" अखिल भारतीय किन महासना ग्रन्य को प्रभागक है और सेठी समय इसके प्रकामन का भार बहन कर रहा है, मैं सेठी ट्रस्ट के नियामक और महासभा के अध्यक्ष श्री मिनबारची मेठी का हार्दिक मभिनन्दन करता हूं मोर इस ब नसेश के लिए उन्हें माधुवाद देता हूँ। पन्य के सुन्दर गोर शुब मुद्रा के लिए में अनुभटो मुद्रक कमल किमार्ग, मानस-कितनगा के कुमाल कर्मचारियों को पन्यगाब देता है। प्रेस मासिक धीर पापनातकी ने विशेष कवि और सत्परता से मे मुक्ति किया है, मैं उनका भाशरी हैं। पुन: इन सभी श्मशील पुस्पारमानों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता शागित करता है और सम्पादन प्रकाशन में रही भूलों के लिये सविनय कमा पाहता। बसन्त पंचमी दिसं.२०१२ श्रीपास्वंताय बन मन्दिर गायो नगर, बोषपुर विनीत वित्तमप्रकास पाटली सम्पादक
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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