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________________ Lyr :.. &ced xx . लो . तिलोयषण्णत्ती के चतुर्थाधिकार का गणित नेशक-मोहम्मोचम जैन पूर्ण एम्पोरियम, ६७७ स राका जनमपुर (4.प्र.) व्यास साषा ४/e - व्यास से परिधि निकासने हेतु 1 का मान अथवा परिधि का मान V१० लिया गया है प्रोर दूर है-- परिधि = 11 व्यास ]kxt पुनः वृत्त का क्षेत्रफल - परिधि x पास पानफल के लिए विदफलं शम्द का उपयोग हुमा है। इसोप्रकार, लम्ब पल रम्म का चनफल-आधार का क्षेत्रफल x (उस्सेध या बाहत्य) गावा ४/५-५६ २ जम्बद्वीप के विष्कम्भ से उसकी परिधि निकासने हेतु ।। का मान १० लेकर विशेष मागे तक परिषि की गणना की गई है । यह ४१. का मान । (३ +१-३ + (सिया ममा है। अर्थात /NE (+-) + x माना गया है । यहाँ । अवर्ग धनात्मक पूर्णांक है, मोर : धनारमा पूर्णाक हैं । अथवा IN E V (o - Y}=h - (vi)" इस विधि से अंतत: अवसप्तासन्न भिन्न शेष प्राप्त होता है। यह गामा का आर. सी. गुप्ता ने की है। यहाँ इसे "चब पदसंसस्म पुढं" का गुणफार बतलाया गया है। इसका अर्थ विचारणीय है। गापा /RE-10 इस गाया में उपरोक्त विधि से क्षेत्रफल की अंत्य महत्ता प्रापित करने हेतु उम्रभासत्र में परमाणुओं की संध्या अन्यकार ने खम्स द्वारा निरूपित की है। * R. C. Gupta, Circumference of the Jambudvipa in Iaina Comography, 2. I. A. S., vol. I0. No. I, 1975. 38-46.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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