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________________ ६० ] तिलोमपणासी पद्म-द्रहका विस्तार हिमवंताचल सक्के पउम वही पुष्ध पष्चिमायामो हंबो, सत्युगुणायाम संपुष्णो ॥ १६६॥ पन सय जोमरण - - 1. ! · · - ५०० १००० :- हिमवान् पर्वतके मध्य में पूर्व-पश्चिम लम्बा पद्मसरोवर है जो पाँच सौ योजन विस्तार और इससे दुगुने आयाम से सम्पन्न है । अर्थात् ५०० योजन चौड़ा और १००० योजन लम्बा ई ।। १६८ ।। - बस जोणावरहो, चोकका सस्सि पुग्छ बिसाए, निम्नच्छदि निम्मगा गंगा ॥१६६॥ B अर्थ :- यह ग्रह दस योजन गहरा और चार तोरण एवं वेदिकाओंसे संयुक्त है । इसकी पूर्व दिशासे गंगा नदी निकलती है ||१९|| उद्गम स्थानमें गंगाका विस्तार जोयक्क-कोसा, निग्गर-ठाणम्मि होदि 'दिपा । कोस वल मेसो ॥ २००॥ गंगा सरंगिथए, 'उच्छेतो जो ६ । को १ को [ गाया : १६८ - २०१ - · अर्थ :-- उद्गम स्थानमें गंगानदीका विस्तार यह योजन, एक कोस ( ६४ यो० ) और ऊँचाई बाधा (३) कोस प्रमाण हूं ||२०० ॥ तोरणका विस्तार गंगा- ईए जिग्गम, ठाणे चिट्ठ वि तोरनो दिब्यो । जब जोयणानि सुगो, दिवड कोसाविरितो य ॥२०११ - ६।३। १. क. . . उ. नित्यारा । २.व. क... उ तबणीए । ३.व.क., व उच्छेदो
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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