SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 818
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाया । २९४४-२६४६ ] वजत्यो महाहियारो [ ७६१ प:-आठ, मो, छह, एक, शुन्य, पार और एक, इस अंक कमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने योजन और एकसो चार भाग अधिक दोनों देशोंकी अन्तिम एवं प्रासोविष सपा वैषवरणकूट नामक दो वक्षार पर्वतोंको आदिम लम्बाई (१४६६REIN यो २६४।। १४१११४५11-- ६४४८.1= १४०१६६८९ यो । दोनों बार-पवंतोंकी मध्यम लम्बाईतिय-पर-सग-पभ-मायणं, बउरेषकसं सपं व छपउदी । मझिमए वीहसं, आसीवित - बेसमण • पूरे ॥२४॥ १४.०७४३।३। अर्थ :--तीन, पार, सात, पान्य, पान्य, चार और एक, इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने पोजन तमा एक सौ छपानवे भाग अधिक माती विष और वैधवरणकूटकी मध्यम लम्बाई (१४००७४३यो ) है ।।२९४४|| १४० १६६८RY - ४३१ = १४.०४४३५ यो । दोनों पर्वतोंकी अन्तिम पौर दो देशोंको आदिम लम्बाईणव--सग-अब-एक-तिय-एक्कं असा छहतरी होति । यो • बक्सार मत माविरुसं बोसु विजपा ॥२४॥ १३६६७८१। । प्रम:-नो, पाठ, सात, नौ, नौ, तीन और एक, इस अंक क्रमसे जो संख्या निमित हो। उत्तने योजन और चिहत्तर भाग अधिक दोनों वक्षार-पर्वतोंकी अन्तिम तवा महापप्रा एवं मलिन देशको आदिम लम्बाई ( १३६९५८ यो०) है ।।२६४।। १४.७४३12-१५ -२७.यो दोनों देशोंकी मध्यम लम्बाईइगि-पर-तिय-पम-पव-सिय एक मंसा कमेण वोर्स छ। मनिसमए रोहत, महवप्पा - एलिग - विजयम्मि ।।२९४६।। १३६०३४१ । ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy