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गाया : २८७४ - २८७७ ]
उत्थी महामारो
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अर्थ :- दोनों वारण्यों में से प्रत्येकका विस्तार ग्यारह हजार छसोमठासो (११६०८ ) योजन प्रमाण है ॥२८७३ ॥
मेर्यादिकोंके विस्तार निकालने का विधान -
मंदरगिरि पहुदी, पिय-गिय-संलाए ताजिये ददे । किस किस
हम
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सोहिये से * ।
इट्ठूण संस पिंडे, असु सक्थे जिथ संखाए भजिये, गिय-निय वासा हवंसि परो ।। २८७५ ।।
को विफलं ॥ २८७४ ।।
म :- इटरहित मन्दर पर्वतादिकोंके सपने-अपने विस्तारको अपनी-अपनी संख्यासे गुरिणत करनेपर जो प्राप्त हो वह अपने-अपने द्वारा रुद्ध विस्तार होता है। इन विस्तारोंका जो पिष्टफल हो उस पिष्टफलको आठ लाखमेंसे घटाकर शेषको अपनी संख्यासे भाजित करनेपर प्रत्येकका अपना-अपना विस्तार होता है ।।२८७४-२६७५ ।।
कच्छा और गन्धमालिनीकी सूची एवं उसको परिधिका प्रमाण
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युगुलम्म भइसाले, मंबर सेसल्स विवस विश्वंभं । मज्झिम- सूई जुत्तं सा सूची कच्छ 'गंधमालिनिए ॥ २६७६ ॥ सहस्स रगब - सया सोलं । भइसालान शंसो सि ।।२८७७ ।।
एक्कसास लक्खा, खालीस वो मेहणं बाहिर
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४१४०६१६ ।
वर्ग:- भालके दुगुने विस्तार में मन्दर पर्वतका विस्तार मिलाकर जो प्राप्त हो उसे मध्य सूची में मिला देनेपर (वह) कच्छा और गन्धमालिनी की सूची प्राप्त होती है। जिसका प्रमाण दोनों मेरु पर्वतोंके बाहर दोनों भद्रशालवनोंके भन्त तक हकतालीस लाख भालीस हजार नोसों सोलह ( ४१४०६१६ ) योजन है ।। २६७६-२६७७।।
विशेषाचं :- भद्रशासनका विस्तार २१५७५८० मन्दरपर्वतका १४०० योजन और मध्यम सूची का प्रमाण ३७ लाख यो० है । अतः ( २१५७५८२ ) + ४०० + १७००००० ४१४०६१६ यो० कच्छा और गन्धमा सिनीकी सूचीका प्रमाण है ।
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१.व.व. क. ज. उ. २..... उ. सपिय सुमनले सोधिरे सम्यदेवेस । ३. द. क. ज. उ. पंचमासोए ।