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गापा-: २७६५-२७१५ ] चस्थो महाहिगारों
[ ५५१ अभंतरम्मि मागे, टंकुभिकरणो बहिम्मि कम होगी।
सुर-खेपर-मण-हरणो, अणाइलिहलो सुबग्ग - णिहो ॥२७६५।।
म:-- देवों तथा विद्याधरोंके मनको हरनेवाला, अनादिनिधन मौर सुवर्गक सदृश यह मानुषोतर पवंत अन्यन्तरभागमें टंकोरकीर्ण और बाह्यभागमें क्रमशः हीन है ।१२७६५॥
___गुफाओंका वर्णनखोइस गुहायो सस्सि, समतदो होति विग्व-रयगमई'।
विजयाणं बहुमण्झे, पणिहीसु फरत - किरणाओ ।।२७६६।।
अर्थ :-- उस ( मामुषोत्तर ) पर्वतमें चारों ओर क्षेत्रों के बहमध्यभागमें उनके पाश्र्वभागों में प्रकाशमान किरणोंसे संयुक्त दिव्यररनमय चौदह गुफाएं हैं ।।२७९६।। af गुहान
समिम असार एसो। काल - असेल पणट्ठो, 'सरिकूले जाप - विरो भय ॥२७६७॥
प्रर्ग।- उन गुफामों के विस्तार, ऊपाई पर बाहस्यका अपदेश फालबध हमारे लिए नदीतटपर उत्पन्न हुए वृक्ष के सदृश न हो गया है ।।२१।।
तट-वेदी तथा बनखण्डआभतर • बाहिरए, समंतको होवि दिव्य • तर-बेरी। जोयम - बलमुच्छहो, पण - सय - चावारिण विपारो ॥२७६८॥
। ५००। प्र:-इस पर्वतके मभ्यन्तर तथा नाममागमें चारों और दिव्य तट-बेती है; जिसका। ___ उत्सेष आधा ( ३ ) योजन और विस्तार पापसी ( ५०० ) धनुष प्रमाण है ११२७६८।।
मोयण-दल-वास-जगो, भाभतर - बाहिरम्मि बसंहो। पुखिल्ल - बेरिएहि, समाण - बेदीहि परियरिभो ॥२७६६।।
१. स.ब. क. प. स. रमणापमो। २. व. ब.क.ब.स. मरिको जाविलोम ।