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________________ ७४८ ] तिलोत्त कालोदकको बाह्य परिधि इगिनउदि लक्खाणि सदर सहस्साणि छत्यागिपि । पंचुत्तरो य परिहो, बाहिरमा तरल लिंचूजा ॥२७८३॥ ६१७०६०५ । अर्थ आप प अर्थ :--उस ( कालोद समुद्र ) की बाह्य परिषि इक्यानबं लाख सत्तर हजार छसो पाँच योजनसे किञ्चित् कम है ।। २७८३ ।। यथा - /२६००००० x १० = ९१७०६०५ योजनोंसे कुछ अधिक है । नोट :- गाथा में बाह्य परिधिका प्रमाण ६१७०६०५ योजन से कुछ कम कहा गया है जबकि गणित की विधि से कुछ अधिक आ रहा है । कालोदसमुद्रस्य महस्योंकी दीर्थतादि भट्टरस जोवनानि दोहा वीस वास संपुग्ला । वासद्ध बहुल सहिदा, गई मुहे १६।३।३। - · 4 [ गाया । २७८३ - २७०६ अर्थ :- इस समुद्र के भीतर नदीप्रवेष्ट स्थानमें रहनेवाले जलधर जोनों की लम्बाई अठारह (१८) योजन (१४४ मीस) चौड़ाई नो (१) योजन ( ७२ मोस ) और ऊँचाई साढ़े चार ( ४३ ) योजन (३६ मील ) प्रमाण है ।।२७६४।। · - कालोवह बहुमन्ते, मच्छाणं दीह वास बहलाणि । इसीसद्वारस " जब जमरणमेताणि रूमसो व १२७८५ ॥ · ३६ । १८ । । । वर्ष :- कालोदसमुद्रकै बहुमध्य में स्थित मस्स्योंकी लम्बाई ३६ योजन ( २६८ मील ), चौड़ाई १८ योजन ( १४४ मील ) और ऊंचाई १ योजन प्रमाण है ।। २७८ ॥ - जलचरा होति ।। २७८४|| • शेष जलचरोंकी अवगाहना भबसेस ठाण म, बहुबिह-ओगाहणेण संयुक्ता । मयर सिसुमार कृच्छ कप्पहृषिमा होति ॥२७८६ ॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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