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गाथा : २६७१-२६७४ ]
महाहियारो
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:- विमंगनदियों के स्थानोंमें बुद्धिका प्रमाण एकसौ उन्नीस योजन और बावन भाग ( ११६६६ योजन } प्रमाण है ।। २६७० ।
यथा :- [ { /(२५० } * १० } ३२ ] + २१२ = ११२३४ योजन वृद्धिका
प्रमाण
देवारण्यके स्थानों में वृद्धिका श्माल
सत्तावीस सयाणं, उनजवी जोमन्नाणि भागा य । बाणउबी
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पायच्या,
शा
देवणिस्स परिय ॥२६७१।।.. आदर्ष की बुटि भी G २७८६६ ।
अर्थ :-- देवारण्यको बृद्धिका प्रमाण दो हजार सातसो नवासी योजन भोर बानवे भाग (२७८९२ मो० ) है ।। २६७९ ।।
[{ vf xer | '१० ] x ३२ ] ÷ २१२ - २७८६३३६ योजन । विजयादिकोंकी आदि, मध्यम और अन्तिम लम्बाई जाननेका उपाय
विजयावीनं श्रबिम दोहे वो विवेज्ज सो होदि । मझिम बोहो महिम, दोहे तं शिवसु मंत-दोहो सो ।। २६७२ ।।
अर्थ :- क्षेत्रादिकोंकी आदिम लम्बाई में वृद्धिका प्रमाण मिला देनेपर मध्यम लम्बाई होती
है और मध्यम लम्बाई में वृद्धि प्रमाण मिला देनेपर उनकी घन्तिम लम्बाई प्राप्त होती है ।।२६७२ ॥
बेसावीण अंतिम वोह पमानं च होदि नं जत्थं । तं जि पमानं
श्रग्गिम
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वखारावीसु भादिल्लं ॥ २६७३॥
अर्थ :- क्षेत्रादिकों की अन्तिम लम्बाईका प्रमाण जहाँ जो हो, वही उससे आागेके वारादिककी घादिम लम्बाईका प्रभाग होता है ।। २६७३॥
कच्छा मौर गन्धमालिनीको आदिम और मध्यम लम्बाई
भ-सग-पण-णब-गभ-पत्र अंक-कर्म -सय भाग ह कच्छाए गंधमालिनि आबोए परिहि रूपेण ॥२६७४ ||
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