________________
गाथा : २६६४-२६६७ ] उत्यो महाठ्यिारो
[ ७१३ भ:-(कच्छादेशकी) परिधिप्रमाण से पर्वतरुख क्षेत्र कम कर देनेपर जो शेष रहे उसको चौंसठसे गुणा करके प्राप्त गुणनफलमें दोसो वारहका भाग देनेपर जो लन्स प्राप्त हो उतनी विदेहक्षेत्रको लम्बाई है। विदेहकी इस लम्बाईका प्रमाए दस साल बीसहजार एकसो इकतालोस योजन और एक योजनके दोसो बारह भागों से एकसौ प्रयासी भाग (१०२-१४१॥ योजन) प्रमाण है ॥२६६२-२६६३।। यथा :-( ३५५८०६२-१७८४२४६४२२१२-१०२०१४ योजन ।
करुछादेशको आदिम लम्बाईसोवा-ईए 'पास, सहस्समेकं च तम्मि 'अवणिज । अवसेसव · पमाचं, बोहत कच्छ - विजयस ॥२६६४॥
प्र: पविदहको उस लम्बाइसे एक हजार योजन प्रमाण सीतानदीका विस्तार कम कर देनेपर ओ शेष रहे उसके अर्घभाग प्रमारा कच्छादेशकी (आदिम ) लम्बाई है ॥२६६४।।
सपा :-( १०२०१४११ - १०००) २=५०६५७०३० योजन ।
पण-जोषण-लक्खारिण, पण-गउवि-सयाणि 'ससरि-सुवाणि । दु • सय - कलाओ हवा, पंक · सस्वेष कस ।।२६६५।।
प्र:-पाच लाख नौ हजार पाचसो सत्तर योजन और दोसो माग अधिक। ( ५०९५७०११ योजन ) कच्छादेशके तियंगविस्तार ( आदिम लम्बाई ) का प्रमाण है ॥२६६।।
अपने-अपने स्थानमें अविदेहका विस्तार-- विजयावि-बास-जग्गो, बालार - विभंग - वरणावं । बस-गुणिवो जं मूल", पुह पुह बत्तीस - गमिदं सं ॥२६६६॥ बारस-ब-दु-सएहि भनिपूर्ण कन्छ - 12 - मेलिपि । तस्पणिय-णिय - ठाणे, विवेह - मस्स विखंभो ॥२६६७।।
१......यस. बास मेष पम्मि । २..क.. प. उ. पवणेजे। 1.., क. म. य. र. सत्तरिस्साये। ४. द मं वसा, ब.क.ब. 1. 1. मूलं मा।।.८. तनु, ब, क. प. म. ए. तहा।