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________________ गाया : २६०६ - २६११ ] त्यो महाहियारो [ ६६७ विशेवार्थ :- धातकीखण्डद्वीपका विस्तार ४००००० योजन है । इसमें स्थित भरत क्षेत्र के बाह्य विस्तार से अभ्यन्सर विस्तार घटाकर अवशेष में विस्तारका भाग देनेपर हानि-वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है। यथा (१८५४७३ ६६१४१ ) ÷ ४००००० = भरत क्षेत्रका अभ्यन्तर विस्तार - समः छाछ सयण, जोस जुलाणि जोयणाणि कला । उणतोस उत्तर भरसभंतरे वासी ।। २६०६ ।। 1911612 DTO I ६६१४ | ३३३ । अर्थ :- भरत क्षेत्रका अभ्यन्तर विस्तार छयासठसो चौदह योजन और एक योजनके दोसी बारह को कम प्रभारु ६.६४६०९।। हैमवतादिक क्षेत्रोंका विस्तार हेमवदं पशुवीर्ण, पक्कं खरगुणो हमें वासो । जाव य विवेहवत्सो, तम्परदो चडगुणा हाणी ।। २६१० ॥ २१३ २६४५६ | | ०५८३३ | २३ | ४२३३३४ | ३१३ | १०५८३३ । २१६ | २६४४८ । । ६६१४ । १३३ । अर्थ :-- विदेहक्षेत्र तक क्रमश: हैमवताविक क्षेत्रोंमेंमें प्रत्येकका विस्तार उत्तरोत्तर इससे ना है। इससे आगे क्रमश: चौगुनी हानि होती गई है ।। २६१० ।। भरतादि क्षेत्रका मध्यम विस्तार बारस- सहस्स-पणसय- इगिसोदी जोयना य छवीसा । भागा भरह खिस्ति य, मक्झिम- विचार परिमाणं ।।२६११।। - १२४८१ । । ५०३२४ । २ । २०१२६८ | १३ | ८०५१६४ || २०१२६८ । १३ । ५०३२४ । १३३ । १२५०१ । ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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