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________________ ६९० ] तिलोयपणती [ गाया २५९० - २५६४ प्राविक आवर्य श्री विपिता जी का ते वारस कुलसेला, बत्तारो ते य बौह-विजयदा । अभंतरस्मि बाहि अंकमुहा सुरम्य ठाणा ॥२५६०|l मभ्यन्तर एवं बाह्यभागमें क्रमश: अर्थ:- बार कुलपर्वत और चारों ही दीर्घ विजया अंकमुख मौर खुरपा ( क्षुरप्र ) जैसे माकारवाले हैं ।। २५६० ।। विजयादिकोंके नाम- विजयादोणं णामा, मंबूवीवम्मि वष्णिा वज्जिय' अंबू - सम्मलि सामाई एस्थ - प्र :- जम्बू और शाल्मली वृक्षके नामोंको छोड़कर शेष जो क्षेत्रादिकों के विविध प्रकारके नाम जम्बूद्वीपमें बतलाये गये हैं, उन्हें ही यहाँ भी कहना चाहिए ।। २५६१ ।। दोनों भरत और दोनों ऐरावत क्षेत्रों की स्थिति - दो पासेसु दक्खि-सुगार-गिरिस्त वो भरलेता । - उत्तर- इसुगारहरू य हवंति एराबवा दोनि ॥२५६२॥ - अर्थ :- दक्षिण इष्वाकार पर्वतके दोनों पार्श्वभागों में दो भरतक्षेत्र और उत्तर इष्वाकारपर्वतके दोनों भागों में दो रावतक्षेत्र है ।। २५९२ ।। विषयोंका आकार - atoj इसुगारणं, बारस कुलपव्वयाण विज्वालें । विवह सरिच्छा, विजया सब्बे वि भाई || २५६३॥ कार विविहा । वता ॥२५६१ ॥ - - अर्थ :- धातकीखण्डद्वोपमें दोनों इष्वाकार और बारह कुलपर्वतों के अन्तराल में स्थित सब क्षेत्र र विवर प्रर्थात् पहिएके भरोके मध्य में रहनेवाले छेदोंके सहण हैं ।। २५९३ ।। कायारा विजया, भागे अभंतरम्मि ते सख्ये । सत्ति मुहं पिव वाहि सपद्धि समाय पस्सना ||२५६४|| 1 :- वे सब क्षेत्र अभ्यन्तरमागमें अंकाकार और वाह्य शक्तिमुख है। इनकी पाश्वंभुजाएँ गाड़ोको उद्धि ( गाड़ी के पहिये ) के समान है ।। २५६४ ।। १ . उ. वज्जिहाज्जय । २. ८. ब. उ. एरायदी । . य. मरदिपजेहि ब. पमर बिवरेहि । -
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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