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________________ ६७६ ] तिलोयपण्णत्ती पणाधिय पंच सया, गंतूगं जीयगारिण विदितासु । - जीवा दिसासु अंतर दिसासु पष्गास परिहीचा ||२५३२ ॥ · ५५० । ५०० । ५०० । अर्थ :- ये द्वीप जम्बूरोपकी जगतीसे पाँचसो पचास (५५० ) योजन जाकर विदिशाथों में और इससे पचास योजन कम अर्थात् केवल ( ५०० ) योजन प्रमाण जाकर दिशाओंमें एवं (५०० यो० ही ) अन्तर- दिशाओंमें स्थित है ।। २५३२ ।। - [ गाथा : २५३२-२५३५ आचार्य श्री शुक्र की ओपन-सव-विषखंभा, अंतर दीवा तहा दिसाचीवा पण यंदा विदिसा-चोदा पचबोस सेल-पविधि-गया ।। २५३३ ॥ १०० । १०० । ५० । २५ । अर्थ:-अन्तर- दिशा तथा दिशागत द्वीपोंका विस्तार एकसो (१००) योजन, विदिशामें स्थित द्वीपोंका विस्तार पचास (५०) योजन और पर्वतोंके परिधिभागों में स्थित द्वीपोंका विस्तार पच्चीस (२५) योजन प्रमाण है ।। २५३३ ।। पुम्बं व गिरि-पणिविनया छत्तय जोयणानि बेदु ति- अयं :- पर्वत - प्रणिषिगत द्वीप पूर्वके सदृश हो जम्बूद्वीपकी जगतीसे सी (६०० ) योजन जाकर स्थित हैं। एक्कोदक- वेसचिका, संगुलिका तह अभासपा तुरिमा । पुरुवाबिसु विदिसास, चउ-वीवागं कुमामुसा कमसो ।। २५३४ ।। अर्थ :- पूर्वादिक दिशाओं में स्थित चार द्वीपोंके कुमानुष क्रमशः एक जंधावाले, सींगवाले, खवाले और गूगे होते हैं ।। २५३४ ।। - प्रलाविस बिदिसास, ससकना ताण उभय-पासेसु । मट्ठ व अंतर - बीबा, पुन्वग्मि विसावि गणा ।।२५३५ ।। - अर्थ :- आग्नेय आदिक विदिशा शोंके चार द्वीपों में कर्ण कुमानुष होते हैं। उनके दोनों पादभागों में मार अन्तरद्वीप हैं, जो पूर्व-आग्नेय दिशा दिके क्रमसे जानना चाहिए ।। २५३५॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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