SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 671
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ ] तिलोयपरणती [ गापा : २४२१-२४२४ जितने काह, जितनी नदियों, जितने वन-समूह, जिसनी देव-नगरियां, जितने जिनेन्द्र-भवन, जितनी विधाघर श्रेणियो, जितने नगर, प्राय खण्हों की जितनी नारया. जितने पर्वत बौर जितने मह है, उनमें से प्रत्येक के अपने-अपने योग्य उतनी ही वेदिया है। इन वेदियोंकी ऊंचाई पाषा योजन और विस्तार पांचसौ धनुष प्रमाण है ।।२४१८-२४२० ।।। गरि बिसेसो एसो, कारणस्स मूबरण्यस्त । मोयगमेक्कं 'उबनो, दंड - सहस्सं च विस्थारो ।।२४२१।। पर्व :--विशेष यह है कि देवारण्य और मूतारण्यको वेदियोंकी ऊंचाई एक योजन तषा विस्तार एक हजार धनुष प्रमाश है ।।२४२१।। जिनमवनोंको संख्याकुं-पणसंर - सरिया - सुरणयरी- सेल-तोरणहारा । विगाहर - पर - सेदो - गपरन्मामंड - गयरीनो ।।२४२२।। वह • पंचय - पुण्यावर - विह-गामावि-सम्मली-कसा । बेतियमेशा जंडू - रुक्माई सेतिया हिण - गिफया ॥२४२३।। पर्व:-कुण, वनसमूह, नदियां, देवनगरिया, पर्वत, तोरणवार, विद्याधर श्रेणियोंके उत्तम मगर, मायंबणोंकी नगरिया, द्रह पंचक ( पांच-पांच दह, पूर्वापर-विदेहों के ग्रामादिक, शाल्मलीक्ष और जम्बूदक जितने हैं उतने ही मिन-भवन भी हैं ।।२५२२-२४२३॥ कुस-शैलादिकोंकी संख्याछाकुल-सेला सम्बे, विजयटा होति तोस बउ - जसा । सोलस वालारगिरी, वारणवंता य पत्तारो ॥२४२४॥ ६। ३४ । १६ । ४। प्रर्ष:-जम्बूद्वीपमें सब कुलपर्वत छह, विजयाचं चौतीस वक्षारगिरि सोलह और गजवन्त पर्वत चार है ॥२४२४१॥ .व.ज.रेश्यो ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy