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गाया : २४१६-२४२० ] पजस्मो महाहियारो
[ ६४३ ME .-- ARE i t प्रमाण
सरियामो मेसियाओ, बेटूसे सेसियाणि शारिख ।
विक्साराओ तामो, णिय - गिम - कुंगण' पाहि ॥२४॥६॥
अर्थ:-जितनी नदिया है उतने ही कुण्ड भी स्थित है। नदियां मपने-अपने कुण्डोंके नामोसे विख्यात है।॥२४१६।।
विरोधार्य :- गंगा-सिन्धु मादि चौदह महानदियाँ कुलाचस पर्वतोंसे जहाँ नीचे गिरती है, वहाँ कुण्ड है । उनको संख्या १४ है । बारह विभंगा नदियोंके उत्पत्ति-कुण्डों की संख्या १२१ बत्तीस विवह देशों से प्रत्येक देषामें दो-दो नदियाँ कुण्डोंसे निकलकर बहती हैं मत: महाक कुण्डोंका प्रमाण ६४ है, इसप्रकार ( to नदियों के ) ये सब { १४+ १२+ ६४= ६० कुण्ड होते हैं।
कुणोंके भवनों में रहनेवासे व्यन्तरदेवबतरवा बहुमो, जिय-णिय-गाण गाम-विदिवानो ।
पल्लाउ-पमाणाप्रो, 'पिवसंती साण विम्ब-गिरि-भवने ॥२४१७॥
प:-अपने कुण्डों के नामोंसे विदित एक पल्यप्रमाण मागुवाले बहुतसे व्यन्तरदेव उन । कुण्डों के दिम्य गिरि-भवनों में निवास करते हैं ॥२४१७।।
वैदियोंको संख्या एवं उस्सेधादिजेरिय कुंडा जेसिय, सरियामो सियाओ बरपसंता । बेतिय सुर • मयरोओ, बेरािय जिषणाह - भवमागि ॥२४१८॥ रिय दिवाहर - सेजियाओ'सियाओ पुरियाओ। प्रमावरे सिय, पपरीमो बत्तियहि - वहा ॥२४१६॥
दोनो तेसियामो, निम-निय-प्रोगाम्रो ताण पोषक । जोयम - बलमुन्छहो, म चावाणि पंच - सया ॥२४२०॥
जो । दंठ ५०० ।
१.ब.प.क.. . . कुमारिण। २. स. प. र. ३. सितारण, म सबसति साग, अ. वि. प्रतीण साए । १.४.ब.क.अ. प. उ. महिमायो ताणं प।