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________________ तिलोपपत्ती | गाथा : २४१२-२४१५ :- हरिवर्ष क्षेत्र में भी नदियोंका प्रमाण हैमवतक्षेत्रकी नदियोंसे दो कम दुगुनी संस्था रूप मर्यात् एक लाख बारह हजार दो ( ११२००२ ) जानना चाहिए ।। २४११ ॥ ६४० ] एवान ति ताणं, सरियाषो मेलिट्टण गुण कवा । जयंति बारसोत्तर बागजवि सहस्स तिय- लक्सा ||२४१२ ॥ ३६२०१२ | अर्थ :- इन तीन क्षेत्रों की नदियों को मिलाकर दुना करनेसे तीन लाख बानवं हजार बारह ( ३६२०१२ ) होता है ।। २४१२।। विशेषार्थ :- भरत क्षेत्रको २८००२ + ५६००२ हैमवत क्षेत्रकी + ११२००२ नदियाँ हरिवर्ष की १९६००६ नदियाँ हुई उण्यवत क्षेत्र यही है हो अतः १६६००६x२= ३६२०१२ नदियाँ यह क्षेत्रोंकी हुई । - भट्टासट्ठि सहस्तम्भहियं' एक्कं तरंगिणी - लक्सं । बेवकुम्मि म खेते, नाव उत्तरकुरुमि ॥२४१३ ॥ १६८००० । अर्थ :- देवकुरु और उत्तरकुरुमें इन नदिशेंको संख्या एक लाख अड़सठ हजार ( १६८००० ) प्रमाण जाननी चाहिए ।। २४१३।। दुसरि संजुशा, जोस - लक्खाणि हॉति दिव्वाश्रो सन्याओ पुष्वावर B विदेह विजयान सरियाको ।। २४१४ ।। १४०००७८ । - पूर्व और पश्विम विदेक्षेत्रोंकी सब दिव्य नदियों चौदह लाख अठहत्तर ( १४०००७८ ) है ॥२४१४ ॥ सशरस-सथसहस्ता, बाणउदि सहस्सया व गउदि-हुदा । वाहिणीश्रो, जंतूकीवम्मि सव्याघ्रो १७६२०६० । १६ ब. क.अ. यच सहस्य बहियं । मिलिवाओ || २४१५ ।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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