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________________ तिलोमपी [ गाया : २३३२-२३३६ :--कितने ही प्राचार्य सीता-सौतोवाके दक्षिण भागमें रक्ता-रक्तोदा घोर उम्रीप्रकार उत्तर- भाग में गंगा-सिन्धु-नदियों का भी निरूपण करते हैं ।। २३३१ ।। ६२२ ] पक्कं पुव्यावर सीवोदाणं तु तबे सोवा - सोता सीतोदके किनारोंपर तीर्थस्थान धर्वाः सन्जाओ 4 विदेह दिवस अखंडन्मि । चेटू 'ति सिणि लिष्णि य, पण मिथला तियंस- विहेहि । - जिंगिए पडिमा ॥ २३३२ ॥ - हालाजि : मिलिवाओ ।।२३३३॥ · पाठान्तर । :- पूर्वापर विदेहक्षेत्रोंमेंसे प्रत्येक क्षेत्रके प्रायं सीता सीतोदके दोनों किनारों पर देवोंके समूह द्वारा नमस्करणीय चरणोंवाली तीन-तीन जिनेन्द्र- प्रतिमाएँ स्थित हैं। ये सर्व तीर्थस्थान मिलकर किया है ।।२३३२-२३३३ ।। सोलह पक्षार पर्वतका वर्णन वक्तारगिरी सोलस, सोबा सोबोबयान सीरे | पण-सय-खोयण बया, कुलगिरि पासेसु एक्क-सम-हीमा ११२३३४।। ५०० | ४०० । अर्थ :- सोलह वक्षारपर्यंत सीता-प्रीतोदा के किनारोंपर पौचसो ( ५०० ) योजन और कुलाचलोंके पार्श्वभागों में एकसौ योजन कम अर्थात् चार सौ ( ४०० ) योजन है ।। २३३४ ॥ वक्लारागं दो पासेस होंति दिव्य वनसंज्ञा । पुह पुह गिरि-सम-बीहा, जोयण दलमे - · विस्थारा ॥ २३३५ ॥ धर्म :- बक्षार-पर्वतोंके दोनों पार्श्व भागों में पृथक् पृथक् पर्वत समान सम्बे और अर्ध योजन प्रमाण विस्तार वाले दिव्य वनखण्ड हैं ।। २३३५ ।। सव्वे वक्तारगिरी, तुरंग संघेण होति सारिच्छा । उवरिम्मि ताम कूडा पारि हर्बति पक्कं ॥ २३३६ ॥ अर्थ :- सब वक्षार पर्वत घोड़े के स्कन्ध सह प्राकारके होते हैं। इनमें से प्रत्येक पर्वतपर चार फूट है ।।२३३६ ॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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