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________________ गामा : २३०३-२३०४ ] उत्यो महाहियारो । ६१५ अपं:- नृत्य करती हुई विचित्र ध्वजामोंके समूहसे युक्त वह नगरी निश्चय ही कमल, उत्पल और कुमुदोंकी गन्धसे सुगन्धित पुष्करिणियों तथा वापिकाओंसे परिपूर्ण है ।।२३०२१) पंडगवण-जिग-मंदिर-मणिमा तीए होति जिग-भवणा। सन्ह - बास - पहविस, उच्छणा ताम उबएसो ।।२३०३।। म :-( जस नगरीके ) जिन-भवन पाण्डकवनके जिन-मन्दिरोंके सदश रमणीय हैं। उनके उसेष-विस्तार मादिका उपदेशा विभिनन्न हो गया है ।।२३.३॥ घर - पारी - णिवहेहि, वियागेहि विचित्त - स्वहि । पर - रयण - भूसणेहि, विबहेहि सोहिया गयरी ।।२३०४।। पर्ष :--यह नगरी मदभुत सौन्दर्य सम्पन्न है और सप्तम रस्माभूषणोंसे भूषित अनेक __ प्रकार विचमण नर-नारियोंके समूहोंसे सुशोभित है ।।२३.४।। [ चित्र पगले पृष्ट पर देखिए ]
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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