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________________ तिलोयपत्ती एक्षक-विसा-भागे, बबसंडा विविह-कुसुम-फल-पुष्णा । सहि-द-ति-सम-फिर पुरी कर ४ि२२३ ३६० । :--उस नगरी प्रत्येक दिशा-भागमें विविध प्रकार के फल-फूलोंसे परिपूर्ण मोर क्रीड़ा करते हुए उत्तम (स्त्री-पुरुषोंके ) युगलों सहित तीन सौ साठ (३६०) संख्या प्रमाण वनसमूह स्थित हैं ||२२९८ || ६१४ ] एक्क सहस्सं गोडर वाराणं चक्कवट्टि परीए । दर " · 44 रयण गिम्मिदानं, खुल्लय बाराण पंत्र-सया ।। २२६९॥ M - १००० । १०० । अर्थ :- चक्रवर्तीको ( उस क्षेमा ) नगरीमें उत्कृष्ट रत्नोंसे निर्मित एक हजार ( १००० ) गोपुरद्वार और पाँचसो ( ५०० ) लघु द्वार है ||२२११॥ + मेथा, वीहीओ पर पुरी रेहति । बारस सहस्त एक्क सहस्स पमाणा, चढ हड्डा सुहब संवारा ।।२३००। - · - [ माया : २२६८ - २३०२ फलिहवाल मरगय- चामोयर पउमराय वर तोरणेहि रम्मा, पासावा तस्य - १२००० ११०००1 :- उस उत्कृष्ट पुरोमें सुख पूर्वक गमन करने योग्य बारह हजार (१२०००) प्रमाण वोथियों और एक हजार ( १००० ) प्रमाण चतुष्पथ है ।।२३००। O · अर्थ:-हूपर स्फटिक, प्रवाल, मरकत, सुवर्ण एवं पद्मरागादिसे निर्मित और उत्तम सोरोंसे रमणीय विस्तीर्ण प्रासाद है || २३०१ ॥ पहूमिमा । विरिणा ॥२३०१ ॥ पोखरनी बावीहि कमलुप्पल कुमुद-गंध-सुरही सा । संयुक्ता जयरी णं णवंत विवि षय १. ब. ज. य. जुतीला . . उ. सोप। - माला ।।२३०२।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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