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तिलोयपम्पत्ती 1 गाथा : २१६०-२१३४ पुव पिव वग - संग पूले उपरिम्म विगजापि ।
पर हो - बार • जुवा, समंतको सुबरा होति ॥२१३०॥
मर्थ:-इन दिग्गज-पर्वतोंके ऊपर एवं मूसमें पूर्व वर्णन के ही सहा उत्तम बन-वेदीद्वारोंसे संयुक्त मोर चारों ओर से सुन्दर पुन-चण्ड ॥२१३ सु ESEAREST
एवामं परिहोमओ, वासलं ति - गिर्वण महियाको ।
ताब उपरिस्मि विश्वा, पासामा कणय - रयनमा ॥२१३१॥
प्रबं:-इनकी परिधिया सिगुणे विस्तारसे कुछ मधिक हैं। उन पर्वतों के ऊपर स्वर्ग और रत्नमय दिव्य प्राप्ताद हैं ॥२१३१।।
पण-घण-कोसायामा, सहल - वासा हवंति पसेकं । सन्चे सरिसुचहा, बासेग विवड - मुभिदेण ॥२१३२||
।१२५ । ... । मर्म :-इन सबमें प्रत्येक प्रासाद पाप पन ( १२५ कोस ) प्रमाण लम्बा, इससे भाषे (सकोस ) प्रमाण घोडा और हेड-गुणा ( ६३ कोस ) केचा है ॥२१३२॥
एरेस भवणेस, कीडेवि बमो ति वाणो देखो।
साकस्स बिकुम्वतो, एरामद • हल्पि - स्वेन ॥२११३।।
म:-इन भवनों में सौधर्म इन्द्रका यम नायक वाइन देन कोठा किया करता है। यह देव ऐरावत हामी के रूपसे विक्रिया करता है ।।२१३३।।
जिनेन्द्र-प्रासादततो सौदोराए, पच्छिम - तोरे शिरिणय - पासादो',
मंघर • बस्लिग - भागे, तिहुदण • चूगमनी नामो ॥२११४॥
पर्व:-इसके प्रागे मन्दर-पर्वतके दक्षिण भागमे सीसोदा नदीके परिचम किमारे पर त्रिभुवन चूडामणि नामक जिनेन्द्र-प्रासाद है ॥२१३४।।
...ब. क. प. य. स. उ. निम्मवाण । ..... . . . . पासाया ।