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________________ १६] तिलोयपष्णती चोपन सत सहस्से, उत्सवे एक्कबीस प्रविधि । मिसहस्सोवरिवरि सोबोवा उत्तर . क. कुंडा । १७४२१INI अर्थ :- यह सीतोवा नदी उत्तरमुख होकर सात हजार चारसी इनकोस योजनसे कुछ मधिक ( ७४२१२१ योजन) निपधपवंतके ऊपर जाती है ।। २०६१।। विलुप्पहस्त गिरिणो, गुहाए बच्देवि भहसाले', बंकस आगंतून तो सा, पडिसीदोदणाम कुं - परिपूर्ण गिग्गच्छबि, तस्सुतर तर तुमारे २०१२ ।। गिग्णयि सा गच्छदि उरार-मग्गे जाव मेद-गिरि । टो कोसेोहमपानिय विसवे पि मुहे ।।२०६३॥ घ : चातु वह नदी पवंत परसे श्राकर और प्रतिसीतोद नामक कुण्डमें गिरकर उसके उत्तरतोरणद्वार से निकलती हुई उत्तर-मासे मेरु पर्वत पर्यन्त जाती है। पुनः दो कोसते मेरु पर्वतको में प्राप्त करें] अर्थात् दी कोर्स दूर है को और मुड़ जाती हैं । २०६२ - २०६३ ।। - · · - [ माया । २०२१-२०१६ - मुहे ।।२०।।। उत्तर मुहेण पविशेति । वेग लेलि अंतरि ॥२०६४।। - वर्ष :---अनन्तर वह नदी उसने ( वो कोस ) प्रमाख अन्तर सहित कुटिल विद्युत्प्रभ पर्वतकी गुफा उत्तरमुखमें प्रवेशकर मद्रमान वनमें जाती है ।।२०१४ | - मेरु- बहु-मन-मार्ग, नियमम्भप्पणिषियं पि कानू । पच्छिम मुहेन मच्छषि, विबेह विजयस्य बहु-मक् ।।२०६५।। I SYORD L मेरुके बहुमध्य भागको घपना मध्य - प्रणिधि करके वह नदी पश्चिम मुझसे विदेहक्षेत्रके बहुमध्यमें होकर जाती है ।।२०६५) बेवकुद खेल जारा, नवी सहस्सा हवंति चुलसीबी । सीसोदा परितीरं पविसंति सहस्त बाबा ।।२०६६। ....... पणिसेवि२. बसलो.......
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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