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तिलोपपपणती
[ गाषा: २०५७-२०६०
समे:-गजदन्ठों को गहराई अपनी-अपनी ऊँचाईक पतुशि प्रमाण है। सोमनस गजवन्तके ऊपर सिव, सौमनस, देवकुरु, मङ्गस, विमल, काञ्चन और मशिष्या ये सात कूट मेसे लेकर निषष पर्वत पर्यन्त स्थित है ॥२०५५-२०५६।।।
सोमनस-सेल-उबए', पर - भजिये होति कुरा उबपाणि ।
वित्यारावामेसु, गण गरिम जबएसो ।।२०५७॥
अर्थ :-सौमनस गजवन्तकी ऊंचाईमें पारका भाग देतेपर जो सम्म प्राप्त हो उतनी इन कूटोंको ऊँचाई है। इन कटोंके विस्तार और सम्बाईने विषयमें उपदेश नहीं है ।।२०५७।।
भूमिए मुहं सोहिय, अपहिवं म मुहाव-गाय-वडी । मुह-सम पण-अण भूमी, उबो इगि'-होग-फूर-परिसंसा ॥२०५८।।
।१०० । १२५ १६ । प्रचं:- भूमिमेंसे मुख कम करके उदयका भाग देनेपर जो मध माप्त हो उतना भूमिकी अपेक्षा हानि और मुखकी अपेक्षा वृद्धिका प्रमाण होता है । यहाँ मुखका प्रमाणा सौ(100) योजन, भूमिका पारके घन (१२५) योजन मौर उदय एक. कम फूट-संख्या (७ - १-६) प्रमाण है।।२०५५।
सय बढीण पमा, पमुषोसं जोयनागि छम्मजिवं। भूमि - मुहेसु होगाहियम्मि कुरान उन्हो ॥२०५६॥
प:-यह क्षय-विका प्रमाण सहसे भाजित एसीस योजन है । इसको भूमिमेंसे कम करने मौर मुडमें जोड़ने पर कुटोंकी ऊँचाईका प्रमाण प्राप्त होता है ।।२०५६॥
अहबारच्छा-णिवा-सय बढी लिवि-विसुब मुहमुत्ता। कूमाग हो उपओ, तेसु पदमम्स पण - वि ॥२०६०।।
। १२५ ।
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१.स. क... 8. रमो, उ, उपक । २. ब. क.. म, 3. न. गृहम्मि मोविए । . मई मोरिप। 1.... प. समायब, सम्माण, क. व. 8. बामाण ।