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सिलोयपण्णसी [ पापा : १६११-१६१५ तान पि अंतरेस, अकट्टिमाओ 'फुरंत - किरणामो। बारस - सहस्स - संखा, संबते' फणय - मालामो ॥११॥
। १२०.० । मपं:- इनके भी बीच में प्रकाशमान किरणों सहित बारह-हजार भकृत्रिम स्वर्णमालाएँ लटकसी हैं ॥१९११।।
प्रह - सहस्सागि, पूष - घडा बार • अग्गरमीस। प्रष्ट - सहस्साओ, ताग पुरे कगय - मालामो ॥१६१२॥
। घू.००1८००० मा ६०.. ...। मर्थ :-मारको अन-पूमियोंमें प्रार-माठ हजार धूप-घट और सन धूप-षट के बागे आठआठ हजार स्वर्ण-मालाएं हैं ॥११॥
पुह सुल्मय - दारेसु', ताणलं होंति एयण-मालाप्रो।
उंच • मालाम्रो तह, खूब - बडा कषय - मालामो ।। १९१३॥
वर्ष :-स-दारोंमें पृपक्-पृथक् इससे पाधी रत्नमासाएं, कन्चन-मालाएं, धूप-पट तथा स्वर्ग-मालाएं हैं ॥१९१३।।
पच्चीस-सहस्सागि, किरापुर-पुत्रीए कनाप - मालाम्रो ।
तागं च अंतरेसु, प्रष्ट - सहस्साणि रमरण - मालाओ ।। १६१४॥
मर्थ:-जिनपुरके पृष्ठ भाग में चौबीस हजार कनक ( स्वर्ण ) मालाएं और इनके बीच में भाव हजार रलमालाएं हैं ॥१९१४॥
मुस-मण्डपका वर्णनमुह-मंगलोय रम्मो, जिनवर-मवणस्स प्रमग-भागम्मि । सोलस • कोसुन्नेहो, सयं च पन्नास - बोह - भासाणि १९१५॥
...क... य. 3. उ.
१.... ज. स. स. ८. पुर। २. ब. स. क. प. य. न. 3. ममत। प्रहमाहि।