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________________ पापा : १७६०-१७६३ ] पजत्यो महाहियारों [ ४५ तक्टिविन-मरण, 'गलियारोवस्स अगदि-बिन-नारे। पविसरि सकण-अलाह, अलवीस-सहस्स-वाहिणी-सहिया ॥१६॥ । २८०००। । महहिमवतो गरो । घर्ष :-इसप्रकार यह नदो उस हैमवत क्षेत्रके हमध्यभागसे दीपकी वेदीके बिलकारमें जाकर मट्ठाईस हमार नदियों सहित सवरण समुद्र में प्रवेश करती है ।।१७६०।। । महाहिमवान् पर्वतका वर्णन समाप्त हुआ। हरिक्षेत्रका निरूपण हरिबरिसस्त घ वाणं, तं उहि - वाघु'भावम् ।।१७६१॥ | | म :-भरतक्षेत्र के गाएको इकतीससे गुणा करने पर जो गुणनफल (H1-४३१% १४) शप्त हो उसना समुद्र तटसे हरिवई क्षेत्रका बाण (१६३१५॥ यो०) जानना चाहिए ||१७६१॥ एक जोयण - लक्वं, सद्वि-सहस्साणि भागहारो । उणवोहि एसो, हरिगरिस - सिए चित्पारो ।।१७६२१॥ पर्म :-हरियर्ष क्षेत्रका विस्तार उनीससे भाजित एक साल साठ हजार (२१) योजन प्रमाण हे ॥१७६२॥ सेहत्तरी - सहस्सा, एक्कोत्तर-पव-सयापि जोयनमा । ससारस य कलाप्रो, हरिवरिसस्सुत्तरे जीवा ॥१७६३॥ ।७३१०१। । 1... वनय । २.६.२.क. ज. E. माहिमवंत । ३...ब.क. २.प. गो। ४. प... तगयो, क. ज. प. सदादो। ... पक्कि।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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