SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११. ] तिलोयपम्हणतो [ गापा : १७३५-१५५५ मह-परिवारहि यो', माली • नामेण तरी वेको । बस • धनु - तुगो केषि, पहलमिवाळ महातमो' ॥१७३।। म:-वहाँपर दस-धनुष ऊँचा, एक पल्प प्रमाण आयुवाला और महान् तेजस्वी 'शाली' नामक व्यन्तरदेव बहुत परियारसे युक्त होकर रहता है ।।१७३५।। हैमवतक्षेत्र में प्रवाहित रोहितास्या नदोका वर्णनपठम'-दहाम्रो उत्तर - भागेस मोहिदास णाम भयो। दो - कोसेहि भाषिय, गाभिगिरि पच्छिमें बस ॥११॥ प:--रोहितास्या नामक नदी पपदहके उत्तरभागसे निकलकर (शब्दवान) नाभिगिरि पहुँचनेसे दो कोस पूर्व ही पश्चिमकी और मुड़ जाती है ।।१७३६।। ने कोहि अपाविय, 'याडं वलय - पच्छिमाहिमुहा । उत्सर-मुहेण ततो, कुडिल सम्वण एसी सरिया Gi गिरि-बहु-माझ-पोस, णिय-मरा - प्रदेसपं च कापूर्ण । पश्चिम - मुहेण गच्छद, परिवार - गीहि परियरिया ।।१३।। :-यह नदी दो कोससे पर्वतको न पाकर अर्थात् दो कोस पूर्व ही रहकर पश्चिमाभिमुख हो जाती है । इसके पश्चात् फिर उत्तराभिमुस होकर कुटिल-रूपसे पामे गाती है और पर्वतके हमध्य प्रदेशको अपना मध्यप्रदेश करके परिवार-नदियोसे युक्त होती हुई पश्चिमको कोर खली जाती है।।१७३७-१७३८ अदाबोस - सहस्सा, परिवार - णबीण होरि परिमाण । बस्स प जगरि-निलं, पपिसिए पबिसेविलवन-वारिणिहि १७२६॥ । २८००० । । हेमबदो पहो। मर्ग:-इसको परिवार नदियोंका प्रमाण मट्ठाईस हजार है । इसप्रकार यह नवी जम्मूदीपकी जगतीके बिल में होकर लरणसमुद्र में प्रवेषा करती है ।।१७३॥ । हैमवत क्षेत्रका वर्णन समाप्त हुआ। ...., १.... पुरा। २.३...म. पंतग ।।... महादेयो। ४. परमवहाउतार। भगवं वेदनय, जय. प्रवचन । ६. प. प. वि. हरिया, प.क.प. सत्ति स तरिया।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy