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________________ गापा : १५३०-१७३४ ] बज्यो महाहियारो [ YE पर्म: उस धवल पर्वतकी ऊंचाई मुख-विस्तार, भूविस्तार और मध्यविस्तार क्रमणा एक हजार, पाचसो, एक हजार और सातसौ पचास योजन प्रमाण है ॥१७२६।। मूलोबरि - भाएस, सो सेलो बेदि - उबवहि - जुबो । वेवो - परमाण दाहिमवंत - गण बणावम्बा ॥१७३०।। म :-वह पर्वस मूल और उपरिम भागों में वैदियों एवं उपवनों सहित है। वेदी और वनों का विस्तार हिममान पूर्वतके, सहम हो जानना चाहिए ! बह-सोरणवार-पा, सध्या - वेदो बिचित्त - रयणमई । परियट्टालिय • बिउला, 'णवंतालेय-वय-वराला वा ॥१७३१॥ प्र:-जस पर्वतको बन-बेदी बहुत तोरणद्वारोंसे संयुक्त. विचित्र रत्नमयो, मार्गों एवं अट्टालिकाओं से प्रचुर तथा नाचती हुई भनेक ध्वजा-पताकामोरो युक्त है ।।१५३१।। तगिरि-उपरिमभागे, बहु-मग्ने होदि विष्व जिग-भवन । बड - तोरग - बेदि • , परिमाहिं सुरराहि संजु ॥१७३२॥ पर्म :-उस पर्वतके ऊपर बहु-मध्यभागमें चार तोरणों एवं वेदियोंसे युक्त तथा मुन्दर प्रतिमामों सहित दिव्य जिनभवन है ।।१७३२।। उम्मेह - पहबीत, संपहि अम्हाग भरिप उबडेसो । तस्स प घडहिसासु', पासारा होति रयणमया ॥१७३३॥ -इस मिनभवनकी ऊँचाई आदिके विषयमें इससमय हमारे पास उपदेश नहीं है। जिन-भवदके चारों मोर रस्लमय प्रासाव है ॥१७३३।। सत्तट्ट - पहबीहिं. भूमीहि मूसिया विवित्ताहि । धुवंत • अय' • बसाया, माणाविह - रपगकप-सोहा ॥१७॥४॥ म:-ये प्रासाद सात-आठ भादि विचित्र भूमियोंसे विभूषित, फहराती हुई वषा पताकाबोंसे संयुक्त मोर नाना-प्रकारके रत्नोंसे शोभायमान है ।।१७३४॥ १.ब. सएमवाणेरमपबरामीया। २. १...पपदामोपा, क. म. रमनवामोगा।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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