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________________ गाथा : १७१६-१७२० ] उस्को माहियारो [ ४८१ :--उम कमल-पुष्पोंपर जितने भवन कहे गये हैं, यहाँ विविध प्रकार के रत्नोंसे निर्मित जिनगृह भी उतने ही होते हैं ।। १७१५ ।। भिंगार कलस बध्परा सुम्बुब घंटा-धमावि संपुष्णा । जिनवर पासावा' ले भागाविह तोरण बारा ।। १७१६।। अर्थ :- वे जिनेन्द्र प्रासाद नाना प्रकारके तोरणद्वारों सहित और भारी, कलश, दर्पण, - बुदबुद घण्टा एवं ध्वजा आदिकसे परिपूर्ण हैं ।। १७१६।। anfuetas: - - बर-चामर मामंडल छत्तत्तप कुसुम-परिस-पहुदीहि । जिनबर I संजुताम्रो तेसुं म:-उन जिन भवनों में उत्तम बमर, भामण्डल, सोन छत्र और पुष्पवृष्टि मादिसे संयुक्त सिने- प्रतिमाएं होभायमान हैं ।। १७१७ ॥ रोहितास्या नदीका निर्देश म - - - भागेोहिदास णाम-गयी । उम्गच्छद छातार जोयन यु समाह अदिति ॥ १७१६|| - - । २७६१६ । अ :- पद्मद्रहके उत्तर- भागसे रोहितास्या नामक उत्तम नदी निकलकर दो सौ छिहतर योजनसे कुछ अधिक दूर तक ( पर्वतके ऊपर ) जाती है ।।१७१८|| 'बाबाढ सोन अंतर कूप्पणालिया-ठामा । धारा- ददा कुडीबाचल सूड दंव पहुवीम्रो ।।१७१६ ।। - 4 . - " पडिमा राज ।। १७१७।। तस्य य तोरण वारे, तोरन गंधा अतीए सरिवाए । संग नईए सरिसा, पचर भासाविएहि ते विगुणा ।।१७२० ।। । मतं यं । ग्र :- इस नदीका विस्वार, गहराई, सोरणोंका अन्तर कूट प्रणालिका स्थान, धाराका विस्तार, कुण्ड, द्वीप, अचल और कूटका विस्तार प्रावि तथा वहाँ पर तोरणद्वार में तोरण-स्तम्भ आदि सबका वर्णन गङ्गा नदीके सदृष्ट ही जानना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ पर इन सबका बिस्तार गङ्गा नदीकी अपेक्षा दूना दूना है ।।१७१९ - १७२० ॥ || हिमकान पर्वतका कचन समाप्त हुआ ।। 1.अ. ब. क.अ. प. उ. प. उ. परम उत्तर १. वारा या कुडं ४ . . . . . ए. कुंड
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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