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गाथा : १७१६-१७२० ]
उस्को माहियारो
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:--उम कमल-पुष्पोंपर जितने भवन कहे गये हैं, यहाँ विविध प्रकार के रत्नोंसे निर्मित जिनगृह भी उतने ही होते हैं ।। १७१५ ।।
भिंगार कलस बध्परा सुम्बुब घंटा-धमावि संपुष्णा ।
जिनवर पासावा' ले भागाविह तोरण बारा ।। १७१६।।
अर्थ :- वे जिनेन्द्र प्रासाद नाना प्रकारके तोरणद्वारों सहित और भारी, कलश, दर्पण,
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बुदबुद घण्टा एवं ध्वजा आदिकसे परिपूर्ण हैं ।। १७१६।।
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बर-चामर मामंडल छत्तत्तप कुसुम-परिस-पहुदीहि ।
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संजुताम्रो तेसुं म:-उन जिन भवनों में उत्तम बमर, भामण्डल, सोन छत्र और पुष्पवृष्टि मादिसे संयुक्त सिने- प्रतिमाएं होभायमान हैं ।। १७१७ ॥
रोहितास्या नदीका निर्देश
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भागेोहिदास णाम-गयी ।
उम्गच्छद छातार जोयन यु समाह अदिति ॥ १७१६||
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। २७६१६ ।
अ :- पद्मद्रहके उत्तर- भागसे रोहितास्या नामक उत्तम नदी निकलकर दो सौ छिहतर योजनसे कुछ अधिक दूर तक ( पर्वतके ऊपर ) जाती है ।।१७१८||
'बाबाढ सोन अंतर कूप्पणालिया-ठामा ।
धारा- ददा कुडीबाचल सूड दंव पहुवीम्रो ।।१७१६ ।।
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पडिमा राज ।। १७१७।।
तस्य य तोरण वारे, तोरन गंधा अतीए सरिवाए ।
संग नईए सरिसा, पचर भासाविएहि ते विगुणा ।।१७२० ।।
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:- इस नदीका विस्वार, गहराई, सोरणोंका अन्तर कूट प्रणालिका स्थान, धाराका विस्तार, कुण्ड, द्वीप, अचल और कूटका विस्तार प्रावि तथा वहाँ पर तोरणद्वार में तोरण-स्तम्भ आदि सबका वर्णन गङ्गा नदीके सदृष्ट ही जानना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ पर इन सबका बिस्तार गङ्गा नदीकी अपेक्षा दूना दूना है ।।१७१९ - १७२० ॥
|| हिमकान पर्वतका कचन समाप्त हुआ ।।
1.अ. ब. क.अ. प. उ. प. उ. परम उत्तर १. वारा या कुडं ४ . . . . . ए. कुंड