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________________ गाया : ७४ ] महाहियारो उपसौवि-सहस्सामि, छप्पन्ना जोयमाथि दंडाई । सत-सहत्सा पद्म-सम-यतीला होंति किचूना' ॥७४॥ जो ७९०५६ । दं ७५३२ । [ २३ अर्थ :- विजयादि द्वारोंका अन्तराल उन्यासी हजार, छप्पन योजन और सात हजार बत्तीस धनुष है जो कुछ कम है ।। ७४ ।। विशेषानं :- जम्बूद्वीपकी परिधि ३ भागका प्रमाण हो द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण है । जो ७६०५६ योजन, ३ कोस १५३२४६ धनुष है। अर्थात् द्वारोंका अन्तराल ७९०५६ योजन ७५३२ धनुष, रिक्कू ० हाथ ० वि००, पाद १ अंगुल १ और जो ४ प्रमाण प्राप्त हो रहा ६०५६ यो० ७५१२ धनुषसे है । किन्तु ग्राथ में किचणा वृद्ध कुछ अधिक प्राप्त हो रहा है। बतएव "किचूणा" शब्दसे यह बोध लिया जाये कि गाया में दिया हुआ माप यथार्थ मापसे कुछ कम है । [ तालिका अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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