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________________ पर्म :- आई श्री हिमपात २२ ] [ गाथा : ७३ जम्बूद्वीपका विष्कम्भ १००००० योजन प्रमाण है, इसके अर्थ भामके वर्गका दुगुना करने पर जो लब्ध प्राप्त होता है, वही द्वीपकी चतुर्थांश परिधिरूप जीवाके वर्गका प्रमारण है तथा इस वर्गका वर्गमूल जीवाका प्रमाण है। जीवाके वर्गको पाँचसे गुरिंगतकर चारका भाग देनेपर धनुषका वर्ग और इसका वर्गमूल धनुषका प्रमाण है । Sin जीवा और धनुषका यह प्रमाण ही द्वारोंके अन्तरालका प्रमाण है जो गाथा ७३-७४ में दर्शाया जाएगा । जीवा के वर्गका एवं जीवाकर प्रमाण ( 190,००० = ५०००० ) x =५००००००००० जीवका वर्ग ४००००००००० ७०७१० योजन, २ कोस, १४२४ धनुष, १ रिक्कू, १ हाथ, १ वि०. १ पाद और अंगुल जीवा का प्रमाण है। धनुषका वर्ग और धनुषका प्रमाण ५०००००००००४५=६२५००००००० धनुषके वर्गका प्रमाण । ६२५००००००० ७९०५६ यो०, ३ फोस एवं १५३२० धनुष अथवा ७६०५६ योजन और ७५३२०४६६ धनुष, धनुषका प्रमाण है । मोह :-गाथा ३४ का विशेषार्थं दृष्य है । विजयादिक द्वारोंके सीधे अन्तरालका प्रमाण --- सतर- सहस्स ओमण, सत-सया बस बुढो प प्रविरितो जगदी-मंतर, बाराणं शिशु-सन- विस्वासं ॥७३॥ जो ७०७१० । अर्थ :- जगतीके अभ्यन्तरभागमें द्वारोंका ऋजु स्वरूप अर्थात् सौधा अन्तराम सत्तर हजार सातसी दस योजनोंसे कुछ अधिक है ||७३॥ विशेषार्थ :- यहाँ ७०७१० योजनसे कुछ अधिकका प्रमाण २ कोस, १४२४ धनुष, १ रिक्कू, १ हाय १ वि० १ पाद मोरगुल है । 1. ज. दिष्वासं ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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