SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गावा: १६२६-१६३३ ] पस्यो महाहिमारी पाच म्लेच्छखण्ड और विद्याधर श्रेणियों में वर्तमान कालका नियमपन-मेच्छ-सयरसेक्षित, प्रवासप्पस्सपिणोए तुरिमम्मि । तदियाए हाणि - अयं, फमसो पदमा चरिमो ति ॥१६२६॥ प्रचं:-पाच म्लेच्छ खण्डों और विद्याधर-श्रेणियों में प्रवसपिणी एवं उत्मपिणीकाप्लमें क्रमशः चतुर्य और तृतीय कासके प्रारम्भसे अन्त-पर्यन्त हानि एवं वृद्धि होती रहती है । (अर्थात् इन स्थानोंमें मवसपिणीकालमें चतुर्पकालके प्रारम्भसे मन्त-पर्यन्त हानि मोर उत्सपिाणी में तृतीय कालक प्रारम्भसे वन्त तक वृद्धि होती रहती है । यहाँ अन्य कालोंको प्रवृत्ति नहीं होती ) ॥१६२६।। उत्सपिएसके प्रतिदुषमा मादि तोन कालोंमे जीवों को संख्यावृद्धिका क्रम उस्सपिचोए प्रमाखरे अदिगुस्समस पदम - सगे। होति हरगर - तिरियाणि, जीया सम्माणि योबाणि ॥१६३०।। पर्व :-आर्यखण्डमें उत्सर्पिणीकालके अतिदुःषमाकालके प्रपम भणमें मनुष्यों और तिर्यों में सब जीव अल्प होते हैं ।।१६३० ।। ततो कमसो बहवा, मणुवा तेरिन्छ-सयल-प्रियतमा । सप्पजति ४ जाप य, दुस्समसुसमस्स बरिमो सि ।।१६।१।। म :-इसके पश्चात् पुनः कमशः दुषमसुषमाकालके अन्त पर्यन्त बहुतसे मनुष्य तथा सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय तियन जीव उत्पत्र होते हैं ।।१६२१॥ एक समयमें विकलेभियोंका नाशा एवं कल्पवृक्षों की उत्पत्तिणासंति एक्क-समए, वियतना-मंगि-णिवह-कुल-मेया। तरिमस्स पहम - समए, कल्पतरुणं पि उम्पती ।।१६३२।। अर्थ :- तत्पश्चात् एक समयमें विकन्दिर प्राणियों के समूह एवं कुलभेद नष्ट हो जाते है तथा चतुर्षकालके प्रथम समय में कल्पवृक्षोंकी भी उत्पत्ति हो जाती है ।।१६३२।। पवितति मणव-तिरिया, जेत्तिय-मेला अहल्ग-भोगणिति । लेखिय - मेता होति , घरकाले भरह - एरवे ।।१६३३।। .-..- .. - . .. -- १. द... क. प. य. उ. गिर।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy