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तिलोयगणाती
[ गाथा : १६१४-१६१८ शलाका पुरुषोंकी उत्पत्तिका समयएरे तेसहि - गरा, सलाग - पुरिसा ताण-कालनि । उम्पनलिकमसो, एकोहि - उवम-कोडकोडीमो ॥१६१४॥
सा १ को को। पर्य :-ये तिरेसठ (२४ तीर्थ+१२ चक्र०-k+t + E) शलाका पुरुष एक कोडाकोड़ो सागर-प्रमाण इस तृतीयकालमें क्रमपा: उत्पन्न होते हैं ।।१६१४।।
इस कालके अलमें आयु धादिका प्रमाणएक्को नवरि विसेसो, बाबाल-सहस्स-बास-परिहीणो' । तरिमम्मि गरा, प्राक इगि धुम्बकोरि-परिमाणं ॥१९१५॥ पणवीसामहिपाणि', पंच सयालि घभूणि अच्छहो । पाउसट्ठी पुढाही. गर • गारो देव - अच्छर - सरिन्छा ॥१६१६॥ ।स्सममुसमो समयो ।
डाकासासागरापम कालमस बयालास हजार वर्षे हीन होता है। इस कालके अन्समें मनुष्यों को प्रायु एक पूर्वकोटि प्रमाण कंपाई पाचसो पच्चीस धमुष और पृष्ठ मागकी हडियो पोसठ होती है । इस समय नर-नारी देवों एवं अप्सराओंके सदृश्य होते है ॥१६१५-१६१६॥
। दुःषमसुषमा कालका वर्णन समाप्त हुआ । चतुर्पकामका प्रवेश पोर प्रवेश कालमें प्रायु नादिका प्रमाणसत्तो पवितदि सुरिमो, गामेभ मुसमबुस्समो कालो । तप्पडमम्मि पराणं, प्राऊ पासान पुचकोडोमो ।। १६१७॥ ताहे ताणं ववया, पणवीसाभाहिय पंचसय चाया।
कमसो प्राऊ · उदया, काल - बलेणं 'पवति ।।१६१८॥
प:-इसके पश्चात् सुषमदुःषमा नामक चतुर्थकाल प्रविष्ट होता है। इसके प्रारम्भमें अनुष्योंकी घायु एक पूर्वकोटि प्रमाण और ऊंचाई पचिनो पच्चीस धनुष प्रमाण होती है। पश्चाद कालके प्रभावसे प्रायु और ऊँचाई प्रत्येक उत्तरोत्तर क्रमस: बढ़ती ही जाती है ।१६१५-१६१८।।
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१. द... क. ज. य. व. परिहोगा। २. द. ब. क. ज. प. उ. दियाएं। ३. ब. पर्वते, क. प. पत, म. उ. पबढते ।