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उषो महाहियारो
धर्म-व्यवस्थाका विनाश
कलिय बहुलस्ते, सादीसु विजयरम्मि उभिए । सणासा' सन्बे, पार्श्वति समाहिमदभाई ॥। १५५२ ।।
किय
गामा : १५५२ - १५५५ ]
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अर्थ :- वे सद कार्तिक मास के कृष्णपक्षके अन्तमें ( अमावस्या के दिन ) सूर्यके स्वाति नक्षत्र के ऊपर उदित रहते संन्यास पूर्वक समाधिमरण प्राप्त करते हैं ।। १५५२ ।।
पर्यायान्तर-प्राप्ति-
उबहिबभाउ सो, सोहम्मे मुनिवरों तयो जायो । सम्मिय से तिन्गि जया, साहिय-पलियोमा उजुरा ।। १५५३ ।।
आवारों का
अर्थ:-समाधिमरण के पश्चात् वीराङ्गद मुनिराज एक सागरोपम मासे युक्त होते हुए स्वगमें उत्पन्न होते हैं और वे तीनों जन भी एक पस्योपमसे कुछ अधिक प्रायु लेकर वहीं पर ( सौधर्म स्वर्ग में ) उत्पन्न होते हैं ।। १५५३ ।।
राज्य (राजा) एवं समाज ( अग्नि ) व्यवस्थाका विनाश
तद्दिवसे मज्झव्हे, कय कोहो को वि असुर-वर-देवो ।
मारेदि कविरायं श्रम्मी खासेरि विणयरत्वमये ।११५५४ |
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४७.
- उसी दिन मध्याह्नमें असुरकुमार जातिका कोई कुछ हुआ उत्तम देव उस कल्की राजाको मारता है और सूर्यास्त समयमें प्रग्नि नष्ट हो जाती है ।। १५५४१
सर्व कल्की एवं उपस्फियोंकी पर्यायान्तर प्राप्ति
एवमिगिवीस कक्को, उवकपको तेतिया य घनाए । जम्मति धम्म दोहा, जसणिहि उबमाण १७ वा ।।१५५५।।
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अर्थ :- इस प्रकार इक्कीस कल्को और इतने हो उपकल्की धर्मका विद्रोह करने के कारण एक सागरोपम श्रासे युक्त होकर धर्मा पृथिवो पहले नरक ) में जन्म लेते हैं ।। १५४५५ ।।
१. व. ब. क.ज. प. उ. साहो । २. ६. ब. क. ब. व. पुता । ... 6. 4. 4. 7. ४. इ. स.ज. जु