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कार्यदर्शक :- आचार्य की सुविधताकर बी वाराण
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तिलोय पणती
[ गाया : १५०५-१५०७
कानके धारक नहीं हुए
अर्थ :- इनके स्वर्गस्थ होनेपर भरत क्षेत्रमें फिर कोई भाषा हैं। गौतम मुनिको वादि लेकर ( माचायं लोहार्य पर्यन्तमे ) सम्पूर्ण कालका प्रमाण छह सौ तेरासी वर्ष होता है ।। १५०४
वीस-सहस् ति धम्मं पयट्टण
श्रुततीके नष्ट होनेका समय
सदा, सत्तारह बच्छराणि सुब- तिक्ष्णं । वोच्छित्सवि काल होसेन ।।१५०५।।
हेतु,
१ २०३१७ ।
प्र :- काल दोवसे धर्मं प्रवर्तन के कारण भूत श्रुततीर्षका बीस हजार तीनसौ सतरह वर्षों बाद म्युच्छेद हो जावेगा ।। १५०५ ।।
विशेवार्थ:- दुःषमा नामक पंचमकाल २१००० वर्षका है, जिसमें ६८३ वर्ष पर्यन्त श्राचाराङ्गादि श्रुतकी धारा क्रमशः क्षीण होती हुई प्रवाहित होती रही। पस्चात् ( २१००० - ६६३ = ) २०३१७ वर्ष पर्यन्त श्रुततोयंका प्रवाह हीयमान रूपसे प्रवाहित होता रहेगा, तत्पश्चात् धर्मप्रवर्तन करने वाले इस श्रुततीयंका सर्वथा म्युच्छेद हो जावेगा ।
चातुर्वर्ण्य संघका अस्तित्व काल -
तेति मेसे काले, जम्मिल्सवि चारण संघादी ।
'प्रविलीयो तुम्मेधो', 'असूयको सह य पाए । १५०६ ।।
सत्त-सम-प्रथम, संजुशो' सल्लगारव' तहिं ।
कलह पियो रागिट्ठो, कूरो कोहालुओं" लोभी ।। १५०७ ।। । सुवितित्य-कणं समत्तं ।
:--- इतने मात्र समय पर्यन्त चातुर्वण्यं सङ्घ जन्म लेता रहेगा । किन्तु लोक प्रायः विनीत, दुद्धि, असूयक ( ईर्ष्यालु ), सात भयों, लाड़ नदों, तीन पाल्यों एवं तीन गावों सहित, कलहप्रिय, रागिष्ठ, क्रूर एवं क्रोधी होगा ।।१५०६- १५०७।।
। धुततीर्थका कथन समाप्त हुआ ।
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१.८. . . . . .म्मेवा
ब. क.स. क.सरे एहि । ४. व. उ. गट्टो ...जसो।
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२.८. . क. ज. य. उ. मंजुषा । ..एहि, ४. ६. ब. रु. उ को जय कोहादियों६...