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गावा: १४५१-१४५५ ] घउत्पो महाहिगारो
[ ४२१ ___रुद्रोंके नाम एवं उनके तीथं निर्देशभीमावलि · निवसत रहो पासागालो य सुपाडो। प्रचलो य पुंडरीओ, अजितंबर - अखियणाभी म ||१५|| पोको सम्बापुतो, अंगधरा सिस्यकत्ति • समाएत । रिसहम्मि पढम-रहो', जिदसत होदि अजिपसामिम्मि ॥१४५२॥ सविहि - पनहेस हा, सत्तस साप्त • कमेण संबादा ।
संति-जिरिगवे क्समो, समयाभुतो य जोर - सिरपम्मि ॥१४५३।।
म :-भीमावलि, जितान, ६, वैश्वानर ( विषवानल ), मुप्रतिष्ठ, भषस, पुण्डरीक, अजितन्धर, प्रजितनाभि, पीठ और सास्यकिपुत्र ये ग्यारह बद्र प्रतापर होते हुए, तीपंकर्तामोंके काम में गए हैं। इनमेंसे प्रथम गद्र ऋषभदेवके कालमें मौर जितपात्र अजितमाच स्वामौके कालमें हुआ है। इसके मागे सात रुद्र मचः सुविधिमापको अादि लेकर सात तीर्थकरोकि समसमें हुए हैं। इसको इन . पान्तिनाप तीर्थकरके समय में और सास्मोक पुत्र वॉर जिनेन्द्र के तीपमें हुया है।
" रुद्रोंके नरक जानेका कारणसम्मे दसमे पुवे, हा भट्टा तबाउ विसया ।
सम्मत - रयण - रहिवा, सुखा घोरेस गिरए ॥१४५४॥
प:-सब एन दसर्वे पूर्वका अध्ययन करते समय विषयों के निमित तपसे प्रष्ट होकर सम्यक्त्वरूपी रलसे रहित होते हुए धोर नरकोंमें डूब गये ।।१४५४॥
कनोंका तोषं निर्देश-- यो चद्द सुनका , सग रहा तह य रोग्णि सुन्नाई। षदो पवारसाई, सुण्णं रह - परिमम्मि ।।१४५५।।
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(संरणि प्रगले पृष्ठ ४२२ पर देधिमे )
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- २. द.व.क. ज. प. उ. विसपत्त।
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१.८.म. क... व्हा ।