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________________ ३७० ] तिलोमपाती [ गाथा . १२५३-१२५६ उहि-उवमान परवी, गवसु सहस्सेसु कोशि-'पहरेनु । सत्तो गवेमु कमसो, सिखा परमप्पाह' - सुपासा ॥१२५३॥ सा ६.००. को । सा १००० को । भ :-इसके पश्चात् नम्ब हमार करोड़ और नौ हजार करोड़ सागरोंके म्यतीत हो जाने पर क्रमश: पद्मप्रभ एवं सुपायनाय तोयंकर सिद्ध हुए ।।१२५३।। णव-सय-मदि-सु, कोरि हसुसमुह - उपमाणे। बाबेस तको सिद्धा, चंवमाह - सुरिहि - सोयसया ॥१५॥ सा ६०० को । सा. को। सा ६ को । :-इसके पश्चात एक करोड़से गुशित नौसो प्रति नोसौ करोर सागर, नर्म करोड सागर और मो करोड़ सागर म्यतीत हो जानेपर क्रमशः चन्द्रप्रम, सुविधिनाय पार पीतलनाम जिनेन्द्र सि२ ४IRink : ki 5.7 सम्बोस-सहस्साहिब-ब-सा-साहिवस्स सापर-सएप । ऊणम्मि कोरि-सायर • कासे सिदो य सेमंसो ॥१२५५।। सा । को रिए । सा १०० घण ६६२६...। अर्थ :- यासठ लाख छम्नीस हजार ( ६६२६००० वर्ष ) और सौ सागर कम एक करोड सागर प्रमाण कालके पते जानेपर भगवान् श्रेयांसनाथ सिब हुए ।।१२५५।। चजवण्या-तीस-ब-पत्र - सायर • उनमेस तह अबोदेस । सिद्धो य वासपुग्यो, कमेण बिमलो अनंत • अम्मा' य ।।१२५६।। । ५४ । ३. | ६ | Y|| अर्थ:-परमात् चौवन, तीस, नो और चार सागरोपोंके व्यतीत हो जाने पर क्रमशः वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाय और धर्मनाथ तीर्थकर सिद्ध हुए ॥१२५६।। १. द.ब.क.अ. य... पडदेमु। २.... ज. प. उ. पाउसम्पहा सुपासाय।.... म. ५. स.मा | Y. ... क. प. उ. मुद्रासी।... र. पासाह, कामदि। १.. क. प. प. स.धम्मोग।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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