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महाहियारो
ऋषभनाथ और बीर जिनेन्द्रका सिद्धि-काल
तिम-वासा' ग्रह-मासा, पक्लं तह सहिय-काल-अबसेसे । सिद्धो उस जिनदो, बीरो तुरियस्स सेसिए सेसे ।। १२५० ।।
कार्यक
गाया : १२५०-१२५२ ]
अर्थ :- ऋषभजिनेन्द्र तृतीयकाल में और वीर जिनेन्द्र चतुर्थकालमें तीन वर्ष, आठ मास और एक एक भवशिष्ट रहनेवर सिद्ध पदको प्राप्त हुए ।। १२५०।।
बिलेवा :- गाया संख्या ११९६ में ऋषभजिनेन्द्र को मोक्ष तिथि माघ कृष्णा चतुर्दशी बताई गई है और यहाँ गा० १२५० में कहा गया है कि तृतीयकासके ३ वर्ष माह शेष रहने पर ऋषभदेव मोक्ष गये। युगका प्रारम्भ श्रावण कृष्णा प्रतिपदासे होता है और माघ कृ. चतुदशीरो श्रावण ऋ० प्रतिपदा तक ५३ माह ही होते हैं। जो गा० १२५० की प्ररूपणा बाधक है। यदि ऋषभनाथकी निर्वारण तिथि कार्तिक कृष्णा श्रमावस्या होती तो गा० १२५० का कथन पार्थ ठ सकता है। यह विषय विचारणीय है ।
ऋषभावि तीर्थकरों के मुक्त होनेका मन्तर काल
सिद्धिम् उस साथर कोडोण पन्न लक्खेसु । बोलीने अजियो, विस्सेयस संपयं पक्षो ।। १२५१ ।
। सा ५० ल को ।
:- ऋषभजिनेन्द्र मुक्त हो जाने के पचास लाख करोड़ सागर बाद अजितनाथ तीर्थंकरने निःश्रेयस सम्पदाको प्राप्त किया ।। १२५१ ।।
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कोडि-लस-पसु ।
बसु तीस बस पत्र संखे ततो कमेण संभव नंवण सुमई गवा सिद्धि ।। १२५२ ।।
। सा ३० ल को। सा १० ल को । साεल को ।
अर्थ :- इसके मागे तीस लाख करोड़, दस लाख करोड़ ओर तो लाख करोड़ सागरोंके व्यतीत हो जानेपर क्रमशः सम्भव, अभिनन्दन और सुमतिनाथ मोक्ष गये ।।१२५२॥
. . . . . . 1 3. 2, 4, 6, X. J. 9971 1.4. परे ।
छ. श्रीषु ।