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तिलोय पणती
कुंषु चउनके हमसो, इगि-दु-ति-छम्मास-समय-पेरतं ।
मि पहूदि निणिदेषु इगि-हु-ति-छन्दास-संखाए ॥। १२४२ ॥
मा १ । २३३ । ६ । यास १ । २ । ३।६।
ऋषभादि
को
गण
मोक्ष-सम्पदाको प्राप्त हो गये थे । कुन्थुनाथ प्रस्नाप, मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरोंको केवलज्ञान होने के क्रमश: एक माह दो माह तीन माह और छह माह्के समय में ही तथा नमिनाथ, नेमिनाथ पावनाय एवं वीर जिनेन्द्रको केवलज्ञान होने के क्रमशः एक वर्ष, दो वर्ष तीन वर्ष एवं ६ वर्षके मध्य में ही उन-उनके शिष्यगण क्रमशः मुक्ति-पदको प्राप्त हो चुके थे ।११२४१-१२४२ ॥
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विशेषार्थभाविकोंके शिष्यों को मुक्ति परम्पराका प्रारम्भ
ऋषभादि सोलह तीर्थंकरोंके शिष्यगण केवलज्ञान उत्पन्न होने के दिनसे ही मोक्ष-सम्पदाको प्राप्त करने लगे । कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ पोर मुनिसुव्रतनाथ तोयंकरोके शिष्यगण क्रमश: केवलकान होनेके एक माह दो माह तीन माह और इ महूके उपरान्त तथा नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और बीर जिनेन्द्रके शिष्य क्रमशः केवलज्ञान होनेके एक वर्ष, दो वर्ष तीन वर्ष एवं छह के पश्चात् मुक्ति पदको प्राप्त होने लगे ।
( सालिक ३० पृष्ठ ३६५ पर देखिये |
[ गाथा : १२४२ - १२४३
ऋषभादिकां सौधर्मादिकों को प्राप्त हुए शिष्योंकी संख्या-सोहम्माविय उबरिम वजा जाग उवगवा सन्गं । उसहायो सिस्सा, तरण मागं परमो ।।१२४३।।
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अयं
स्वर्गको प्राप्त हुए हैं. उनके प्रमाणका रूपा करता हूँ ।। १२४३ ।।
ऋषभाविक जिनेन्द्रोंके जो मुनि ( शिष्य ) सोघमंसे लेकर ऊर्व प्रवेयक पर्यन्त