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गाथा : १२२२-१२२४ ] चउस्मो महा हियारो
[ ३५७ म। ऋषभनाथ, वासुपूज्य एवं नेमिनाप परप-रह-आसमसे तथा गेष जिनेन्द्र कायोत्सर्ग मुद्रासे मोक्षको प्राप्त हुए हैं ॥१२२३।।
मुक्तिफल यापनाबसन्ततिलकापोरद्व-कम्म-बियरे दलिहूल लर
गिस्सेयता जिनवरा जगव - जिम्मा । प्रतिक्षित
? 'सितिपमहरि-भव-जणाण सम्बे ॥१२२२॥ प्र:-जिन्होंने घोर अट-कोके समूहको नष्ट करके निःश्रेयसपदको प्राप्त कर लिया है मौर जो जगत्के वन्दनीय है ऐसे वे सर्व जिनेन्द्र शोर हो. श्री बालचन्द्र मैदान्तिक प्रादि भव्यजनोंको मुक्ति प्रदान करें ॥१२२२।।
ऋषभादिजिनेन्द्रोंके तीर्वमें अनुबद्ध केवलियोंकी सच्यावसमते घसौदी, कमसो मणुबड - केवसी होति । बहारि चउवाल, सेयंसे वासुपुरले य ॥१२२३।।
८४ । से ७२ वा ४४ । पर्व:-त्रादिनाथसे शीतलनाष पर्यन्त (प्रत्येक के ) पौरामी तथा श्रेयांसनाप और वासुपूज्यके क्रमशः बहत्तर एवं वासोस अनुमड केपली हुए हैं ।।१२२३।।
विमल-विणे चालीसं, बस तबो बार-विवक्किया कमसो। तिमिल किवव पास जिये तिष्णि धिय वड्माणम्मि ॥१२२४।। । ४. । ३६ । ३२ । २८ । २४ । २० । १६ । १२ ।।४।३।३ ।
प:-विमस जिनेन्द्र के पालीस, इसके पश्चात् नौ तीर्थकरोंके क्रमशः उत्तरोत्तर पारपार हीन, पाश्र्वनाथ तीन और वर्धमान स्वामीके भी तीन ही अनुबद्ध कंवली हुए है।।१२३४॥
1... ज. प. उ. सिबति पविनम्वनणाण ।