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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा ११६४ - ११६१
:- बावकोंकी संख्या ऋषभादिक आठ तीर्थंकरोंमेंसे प्रत्येकके तीर्थ में तीन-तीन लाख और सुविधिनाथ प्रभृति पाठ तीर्थंकरों में से प्रत्येकके तीर्थमें दो-दो भाब पी। कुम्युनाबादि आठ सीकरोंमेंसे प्रत्येक तीर्थ में श्रावकोंको संख्या एक-एक लाख कही गई है। सर्व श्रावकोंकी संख्याको मिला देनेपर समस्त प्रमाण अड़तालीस लाख होता है ।। १९६२-११६३।।
श्राविकाओंकी संख्या -
३५० ]
पण चतिम लम्बाई पणमिषा पुह पुह सामणि संज्ञा, सब्जा मुन्यददि
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| ४००००० । ४००००० ३००००० १६००००० ।
वर्ष :- आठ-आठ तीर्थकरोंमेंसे प्रत्येकके तीर्थमें श्राविकाओं को पृथक् पृथक् संख्या क्रमशः पाँच लाख, चार लाख और तीन लाख तथा ( श्राविकाओं की ) सम्पूर्ण संख्या खपानवे लाब कही गई है ।। ११९४ ||
तिथेसु । लक्चाई ।। १११४ ।।
प्रत्येक तीर्थ में देव देवियों तथा अन्य मनुष्यों एवं तियोंकी संख्यामार्यवर्त : ariel of da
देवी वेद समूह, जातीवा हवंति गर तिरिया ।
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संलेमा एक्केबके लित्वे विहरति भक्ति जुत्ता' ११११९५ ।।
अर्थ :
तियंच जीव भक्तिसे संयुक्त होते हुए विहार किया करते हैं ।। ११६५ ।।
प्रत्येक तीर्थंकर के तीर्थमें संख्यात देव देवियोंके समूह एवं संक्यात मनुष्य वीर
ऋषभादि तीर्थंकरोंके मुक्त होनेकी तिथि काम, नक्षत्र और सह-मुक्त जीवोंको संख्याका निर्देश
समं
माघस्स किन्तु चोइसि पुष्यन्हे नियय-जन्म-क् अट्ठावयम्मि उसहो अजुवेण
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गमो मोक्स* ।। ११९६५
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म :- ऋषभदेव माघ कृष्ण चतुर्दशी के पूर्वाह्न में अपने जन्म ( उत्तराषाढा ) नक्षत्र के रहते कैलासपर्वतसे दस हजार मुनिराजोंके साथ मोक्षको प्राप्त हुए ।। ११२६ ।।
२. ८. २.. उ. प. उ. परिवर २. एनको १.व.उ. जुतो, द. न. जुद, य. क. ४. २. ब. क. ज. जोमिप जम्मि
गुदा ।