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वाचार्य श्री सुतिसागर की टा
३४८ ]
तिलोयप भगती
[ गावा
११६६ - ११६८
अर्थ :- प्ररजिनेन्द्रकं तीर्थ में साठ हजार ( ६००००) मोर महिल जिनेन्द्र के तीर्थ में पचपन हजार ( ५५०००) धायिकाएं वीं ।। ११८५ ॥
पण्णास सहस्साण, विरदीओ सुध्वदस्स तिरथम्मि ।
पंख - सहस्तम्भहिया, चाल सहस्सा नाम जिनस ॥१११८६॥
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५०००० | ४५००० ।
प्र:- मुनिसुव्रत के तीर्थमें पचास हजार (५०००० ) और नमि जिनेन्द्रके तीर्थ में पांच हजार अधिक चालीस ( पंतालीस हजार ( ४५००० ) आधिकाएँ थीं ।। ११८६ ॥
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विगुणिय-बस-सहस्सा मिल्स कमेन पास वोराजं ।
अडतीस पतीसं होंति सहस्सानि विरवधो ।।११८७।।
४०००० | ३८००० | ३५००० |
नाम
अर्थ :- नेमिनाथके सीमें द्विगुण बीस ( चालीस हजार ( ४०००० ) और एवं बोर जिनेशके तीर्थ में क्रमशः बड़तीस हजार ( ३८००० ) एवं छतीस हजार ( ३६००० ) प्रायिकाएं च ।। ११८७॥
आयिकाओं की कुल संख्या
बभ-पण--ख-पंचंबर पंचक कमेन शिरकत्तानं
सवाणं विरदीओ, चंक्जल निकलंक' सीलाश्री ॥। ११८८ ॥
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। ५०५६२५० ।
अर्थ :- सर्व तीर्थंकरों के तीर्थ में चन्द्र सस उज्ज्वल एवं निष्कलङ्क शीससे संयुक्त समस्त भाविकाएँ क्रमशः शून्य, पांच, दो, छह पाँच, शुन्य और पांच ( ५०५६२५० ) अंक प्रमाण off 11335511