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________________ तिलपणी वि २०५५ । वा १६०० । अर्थ :- बरनाथ जिनेन्द्रके सात गणों में से पूर्वघर सहसो दस, शिक्षक-श्रम तीस हजार आठ सौ पैंतीस अवधिज्ञानी दो हजार आठ सौ इतने ही केवली विक्रियाणादिधारी चार हजार तीन सौ. विपुलमति दो हजार पचपन और वादी एक हजार छन् सो थे ।। ११५७-११४९ ।। मल्लिजिनेन्द्र के सात गणोंका प्रमाण पण्णासम्भहियाणि पंचसयाणि हवंति पुम्बधरा । एक्स-संतो ३४० ] [ गाथा ११६०-११६३ सही व १६० ।। । ५५० । सि २६००० । बावीस-सया ओहो, सिय-मेसा य होंति केवलणो । ब-सय-अमहियाई", बोणि सहस्वाणि वेगुव्वी ।।११६१ ॥ । ओ २२०० । के २२०० । वे २६०० । एक्क सहस्सा सग-सय-सहिद पन्थाम होंति विलमयी । चसय जुर्व सहस्सं वादी सिरिमल्लिणामि ।।११६२ ।। । दि १७५० वा १४०० । :- श्रीमल्लिनाथके साथ गणों से पूर्व घर पांचसौ पचास, शिक्षक- श्रमण एक कम सोस अर्थात् उनतीस हजार अवधिज्ञानी दो हजार दो सौ इसने ही केवली, विक्रिया-कदिवारी दो हजार नौ सौ विपुलमति एक हजार सातस पचास और दादी एक हजार चार सौ ये ।।११६०-११६२ । । ,,, . . . . मुनिसुव्रतनाथ के सात गणको संख्या पंच-सा पुनधरा, सिक्लगणा एवकवीसदि सहस्सा । ड-सर्व सहस्सं, प्रोही तं चेव केवलिगो ॥। ११६३ ॥ पु ५००। सि २१००० द्यो १८०० के १८००
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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