SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३८ ] तिसोयपण्णत्ती [गाथा : ११५०-११५३ धर्मनग्यके सात गोंका प्रमाण नर पुष्वपर-सयाई, मास-सहस्साई सग-सया-सिला। सास-समा गा, पनवास. सयामि कपालमा IPYou पु... मि ४०४०० 1 मो ३६०० के ४५०० । वेगुग्वि' सग-सहस्सा, पश्वास-सयानि होति बिजलमयी । अट्टाबोस - सयापि, बादी सिरिषम्म - सामिम्मि ॥११५॥ ७००० । वि ४५०० । वा २८००। म :-धर्मनाय स्वामीके सात गणों से पूर्वपर नौ सौ, शिक्षक पालीस हजार सात सी, अवधिज्ञानी छत्तीस सौ, केयसी चार हजार पांच सौ, विक्रिया द्विधारी सात इनार, विपुलमति पार हजार पांच सौ तथा वादी दो हजार माठ सी थे ।।११५.-११५१॥ शान्तिनापके सात पणॉका प्रमाण अटु-सया पुबपरा, इगिवास-सहस्स-प्रज-सया सिम्मा । तिष्णि सहस्सा ओही, बलिणो पत्र - सहस्सामि ॥११५२॥ पु.८०० । सि ४१८०० । प्रो ३००० । के १००० । देगुदि छासहस्सा, बत्तारि - सहस्समणि बिलमवा । पोष्णि साहस्सा पड - सप - अता संतीसरे नारी ॥११५३॥ थे ६.०० । वि४... । वा २४..। मय:-शान्तिनाथके सात परों से पूर्वघर आठ सौ, शिक्षक इकतालीस हजार आठ सौ, भवधिशानी तीन हजार, केवली चार हजार, विश्यिा-द्विधारो छह हजार, विपुलमति चार हजार मौर बादी दो हजार चार सौ ये ॥१९५२-११५३।। - .. -- १. प. विगुपि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy