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गाना : ११०७-१९१० ] पस्यो महाहियारो
[ ३२९ धन्मम्मि संति-कुपू-अर-महली कमा सहस्सानि ।
घउसट्ठी वासट्ठी, सट्ठी पन्नास बातीता ॥११०७॥ धम्म ६४००० । सं १२००० MERATOPA सर 01- 1972RNE KETRY
पर्ष :-धर्मनाप, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ और मस्तिनाप तीपंकरके समयमें ऋषियोंकी संस्थाका प्रमाण क्रमशः चौसठहजार, सासठहजार, साठहजार, पचासहजार और चालीस हबार पा ॥१०॥
सुव्वद-मि-णेमीसु, कमसो पासम्मि पठमाणम्मि ।
तोसं वोसट्टारस, सोलस-चोड्स' - सहस्साणि ॥११०८।। मु ३०००० । २०००० । मि १८००० । पास १६००० । घोर १४००० ।
प्रपं:-मुनिसुव्रत, नमिनाथ, नेमिनाथ, पाश्वनाथ मौर वर्षमान स्वामी के समयमें ऋषियोंका प्रमाण कमशः तीस हजार, बीस हजार, अठारह हजार, सोसह हमार भोर चौदह हजार या ॥११०८॥
प्रत्येक तीर्थकरके सात गणकि नामपुम्बधर-सिकल-प्रोही-केवाल-वेबि-बिउलमधि-बादी ।
परोककं सत्त-गना, सध्यानं तिरय - कत्तानं ॥११०६॥
पत्र:-सम तीर्थंकरों में प्रत्येक ( तीर्थकर ) के पूर्वधर, शिक्षक, अवधिशानी, केवलो, बिक्रिया-ऋद्विधारी, विपुलमति एवं वादी इसप्रकार ये सात संघ होते हैं ।।११०।।
ऋपम-तीर्थकरके गणोंकी संस्थापत्तारि सहस्सा सग - सयाद - पानास पुवषर-संक्षा । सिम्लग - संतात निधय, छस्सय ऊणी कर परि ॥१११०॥
उसह पुब्ब ४७५० । सिक्ख ४१५० ।। प्रथ:-ऋषभ जिनेन्द्र के सात गरयोंमेंसे पूर्वघरोंकी संख्या चार हजार सातसो पचास थी। शिक्षकोंकी संख्या भी यही थी परन्तु इसमें से छहसो कम थे, इतनी यहाँ विशेषता है ॥१११०॥
१. प. परवस ।