SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८ ] तिलोयपणतो [ गापा : ११०३-११०६ ऋषियोंको संख्याएसो' सरि रिसि-संवा निस्सामिबउसीरि-सहस्साणि, रिसि-प्पमानं हवेदि उसाह-विणे । इगि-पु-ति-सक्खा, कमसो अभिय-सिने संभवाम्म परगए ॥११.३॥ उस ४००० । प्रजि प स । संभव २ ल । अभि ३ ल । w:-यहाँ से आगे अब ऋषियोंकी संख्या कहता हूं अषियोंका प्रमाण ऋषभ-जिनेन्द्र के समय में चौरासी हजार तपा अजितमार, सम्भवनाय एवं अभिनन्दननाथके समय में क्रमशः एक लाख, दो लाख मौर तीन लाख था ।।११.३॥ बोस-सहस्स-शुवाई, लममा सिणि सुमा-चेम्मि । तौबा गणितमको निजिलि ३०॥ सुमइ ३२०००० । पम ३३००००। प्रबं:-सुमतिनाथके समय में ऋषियोंका प्रमाण तीन लाख, गीत हजार और पचप्रमके समयमें तीन लाख, तीस हजार था 1११०४॥ तिणि सुपासे बंदप्पाह-वे योनि अब-संजुत्ता । सुविहि-जिनियम्मि दुवे, सीयलणाहम्मि इगि-लक्वं ॥११०५॥ सुपाम ३M 1 चंद २५००० | पृष्फ : न । मीय १ ल । प्रचं:-षियोंको संख्याका प्रमाण मुपाश्र्वनाथस्वामोके समय में तोन लाख, चन्नप्रभदेवके अढ़ाई लाख, सुविषिजितेन्द्र के दो साख भौर शीतलनायके एक लाख पा ॥११०५॥ उसीवि - सहस्साई, सेयसे वासुपुब्न - गाहम्मि । बापतरि अडसट्टो, विमले छाष्ट्रिया अनंताम्म ।।११०६॥ से २४००० 1 वा ७२००० 1 विम ६८००० । अणं ६६००० । प्रष:-श्रेयांस जिनेन्द्र के समय में ऋषियोंका प्रमाण चौरामी हजार, वासुपूज्यस्वामीके बहतर हजार, विमलनायके अड़सठ हजार और प्रनन्सनायके छयासक हबार था ।।११०६॥ -- - -- - १. ब. . तो 1 २.८. क, . य. उ. बखा।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy