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गाषा : १०७७-१०८० ]
यि तेल्लोकं
भषि जीए समत्वा सा रिद्धी काय बल
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शावक
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उस्यो महाहिगारो
झति कट्टि लीए अव
श्री गिरी । एवं बल रिद्धी समता ।
वर्ष :- जिसके बलसे वीर्यान्तराय प्रकृतिके उत्कृष्ट योपशमकी विशेषता होने पर मुनि मास एवं चतुर्मासादिरूप कायोत्सर्ग करते हुए भी श्रमसे रहित होते है तथा शोधतासे तीनों arathi foष्ठ लोके ऊपर उठाकर अन्यत्र स्थापित करने में समर्थ होते हैं, वह कायबल नामक ऋद्धि है ।। १०७६- १०७७॥
। इसप्रकार बसद्धिका वर्णन समाप्त हुआ
ओषधि ऋद्धिकेभेद
ओसी पत्ता ।
आमरिस- खेल - महला- मल-विड-सच्चा मुह दिट्टि गिव्विसाओ, अट्ठ विहा ओसही रिद्धी ॥ १०७८ ||
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१. व. न. म तेसो
अर्थ : श्रमशोषधि, लौषधि, जल्लोषधि, मलौषधि, विशेषषि, सदोषधि, और दृष्टि निर्विष इस प्रकार श्रीषधिकद्धि पाठ प्रकार की है ||१०७८ ॥
आमशौषधि अद्धि
जीए लासासेमश्रीमल
जीवाण रोग हरणा,
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( रोगी ) जीव नीरोग हो जाते हैं, यह ग्रामशोषधि ऋद्धि है ।११०७६ ।।
भामा ॥१०७७
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रिसि-कर-चरणावी, अल्लिय मेलम्म जीए पासम्म । जीवा होंति निरोगा, सा अमरीसोसही रिद्धी ।।१७६॥
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:- जिस ऋद्धि के प्रभावसे ऋषिके हस्त एवं पादादिके स्पशंसे तथा समीप माने मात्रसे
२. ४. ब. क. ज. द. मच्छेवर
नौषधि ऋद्धि
सिंहान आविया सिन्धं । सच्चिय खेलोसही रिद्धी ॥। १०८० ॥
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मुनिविष