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ज.प.उ. मनुझे ।
बल- रिद्धी ति वियप्पा, मण वयन सरीरयान भेदेरा |
सुव
णानावरणाए,
पयडीए
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तिसोमणशी
ए
आचार्य श्री आर की बस के भेद एवं मनोबल-श्राद्ध
उक्कस्स सदोषसमे, मुहत्त मेशतरम्मि सयल-सुदं ।
चितड़ भाग जीए सा रिद्धी मण बला मामा ।।१०७३।
[ गापा : १०७९-१०७६
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अर्थ :-- मन वचन और कायके भेदसे बल- ऋद्धि तीन प्रकार को है। इनमेंसे जिस ऋद्धि द्वारा खुतज्ञानावरण और बोर्यान्तराय इन दो प्रकृतियोंकः उत्कृष्ट क्षयोपसम होनेपर ( श्रमण ) मुहूर्तमात्र ( अन्तर्मुहूर्त ) काल में सम्पूर्ण धुतका चिन्तयन कर लेता है एवं उसे जान लेता है, वह मनोबल नामक ऋद्धि है ।११०७२-१०७३॥
ओरियंतरापाए ।११०७२॥
वचनबल ऋद्धि---
जिम्भिनिय मोइंदिय सुदानावरण-विरिय विग्धानं । उक्कस्स लोवसमे तरम्म सुमी 11१०७४
मुहंत
सलं पि सुबं जाण, उच्चारह जीए' विष्कुरसीए । *असमो अहोम कंठो, सा रिद्धी बयन बल - जामा ।। १०७५ ॥
उपकस्स - खवोदसमे मास-उमास पशुहे',
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श्रयं :- जिले न्द्रियावरण, नोइन्द्रियावरण, श्रुतज्ञानावरण और वीर्मान्तरायका उत्कृष्ट
क्षयोपशम होने पर जिस के प्रगट होनेसे मुनि श्रम रहित एवं महीन कण्ठ ( कण्ठसे बोले बिना हो ) होते हुए ( अन्तर ) मुहर्तमात्र कालके भीतर सम्पूर्ण भुतको जान लेते हैं एवं उसका उच्चारण कर लेते हैं, उसे वचन-बल नामक ऋद्धि जानना चाहिए ०७४-२०७५।।
कायमल ऋद्धि
पविसेसे विरिघ विग्ध-पयडीए । काउस्समो हि सम होना ।। १०७६ ।।
ज य च जिय विष्फुर सिए २. द. व.क. र पसले, ज. व. वस
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३.प.ब.