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________________ गाया । २०२९ २०३१ ] महाहियारो [ ३०७ बुद्धिको प्रशा- श्रमण-द्धि कहते हैं। वह प्रोत्पत्तिको पारिणामिको वैनमिकी घोर कर्मजा धनबाद नामों वाली जाननी चाहिए ।।१०२६-१०२८ antasia :.. आचार्य की आखिर की प अउपतिको भवंतर सुर बिनएवं समुल्लतिदभावा । मिय-य-जाबि बिसेसे, उप्पन्न पारिनामिकी गामा ||१०२६॥ · बहन की विणएवं अध्यक्जबि बारसंग-सु-बोगे । सममेसेज बिप्पा तय बिसेस लाग कम्मा रिमा || १०३०|| । पण्णा समणद्धि गया ! - - अर्थ : पूर्व भवमें श्रुतके प्रति की गई विनयसे उत्पन्न होने वाली मौमिकी, निज-निज जाति विशेषमें उत्पन्न हुई पारिणामिकी, द्वादशाङ्ग श्रुतके योग्य विनयसे उत्पन्न होने वाली वैनयिकी और उपदेशके बिना ही विशेष तपकी प्राप्तिसे प्राविर्भूत हुई दोषी कर्मजा प्रज्ञा श्रमण-ि समझनी चाहिए ।। १०२६ - १०३० ।। । प्रज्ञा श्रमश ऋचिका कथन समाप्त हुआ । प्रत्येक-बुद्धि कम्मान उसमे य, गुरुबदेसं विणा कि पावेदि तबप्पगमं ओए' पत्तय सण्णान - बुद्धी गवारे | अर्थ :--- जिसके द्वारा गुरुके उपदेशके बिना ही कहके उपशमसे सम्यग्ज्ञान और सपके विषय में प्रगति होती है, वह प्रत्येक-बुद्धि कहलाती है ।। १०३१।। प्रत्येक बुद्धिका कथन समाप्त हुआ । 1. . . . W, Z. 3. · २. ६. ब. क. म. उ. गदं बुद्धी सा ॥। १०३१ ॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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