SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : ६७३-७६ ] पउत्यो महाहियारो [ २६३ ऋषभावितोयंकरोंके मार गणघरोंके नाम 'पढमो है उसहसेगो, केसरिसेगो प पावतोय । पनवमरों' प बम्जो, चमरो बसरस - वेबमा ||९७३॥ मागो कुथू धम्मो, मंदिरमामा मओ अरिहो य । सेणो सकायुहयो, सयंमू कुभो विसाखो य ।।६७४।। मल्लीणामो सोमा - वखत सयंभु • इंबभूवीओ। सहावीणं प्राविम - गणहर णामानि एवाणि ||९७५।। प:- ऋषभसेम, २ केशरि (सिंह) सेन, ३ पारदत्त, ४ वप्जयमर, ५ वज, चमर, ७ बमदत्त ( बलिदत्तक ), ८ वैदर्म, नाग (अनगार), १० कुन्यु. ११ धर्म, १२ मन्दिर, १३ जय, १४ बरिष्ट, १५ सेन ( अरिष्टसेन ). १६ घायुष, १७ स्वयंभू, १८ कुम्भ { कुन्यु }, १६ विशाख, २. मल्सि, २९ सोमक, २२ वरदत्त, २३ स्वयंभू और २४ इन्दभूति, ये क्रमशः ऋषभादि तीर्थक के प्रथम गसपरोके नाम है1९७३-६७५।। [ ताक्षिका : २६ अगले पृष्ठ पर देषिये ] ऋषियोंका स्वरूप कहनेको प्रतिज्ञा एवं उनके भेदएवं गनहर - देवा, सम्वे विहु अट्ठ-रिवि-संपुष्णा । तागं रिदि . सहवं, लब - मेतं सं गिस्बेमो ॥६७६॥ म:-ये सब ही गणधरदेव पाठ ऋद्धियोंमे संयुक्त होते हैं। यहां उन गणधरों को अडियोंके स्वम्पका हम लव-मात्र निरूपण करते हैं ।।६।। - - -. १. प.ब.क. ब. क. ५. पथमा। २. द. म. ज. स. 1 सम्बपरी ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy